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________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) दादाश्री : वह ठीक है । वह अर्थ गलत नहीं है। जब तक ज्ञान नहीं है तो वे सब निमित्त ही हैं न कषाय करने में ! किसी ने मज़ाक उड़ाई तो वह चिढ़ गया, फिर से वापस निमित्त खड़ा हो जाता है न! और आप तो अगर कोई मज़ाक उड़ाओ तो भी बंधन में नहीं आते, आपको तो सिर्फ, अगर उसे खराब लगा तो उसका प्रतिक्रमण कर लेना है और वह करने का अधिकार भी आपको नहीं है, 'चंदूभाई' से कहना है न, 'क्यों तूने ऐसा किया ? तुझे शरम नहीं आती, इतनी उम्र हो गई है अब ! प्रतिक्रमण करो ।' हमें कहना है कि 'उम्र हो गई है अब, दादा बन गया, फिर भी तुम ऐसा कर रहे हो?' ऐसा कहना चाहिए 'हमें', नहीं कह सकते?! ३१८ प्रश्नकर्ता : कह सकते हैं I दादाश्री : हाँ, कहना है और कौन कह सकता है? और कोई कहे तब तो उसका तेल निकाल दे। यह कभी तो समझना ही पड़ेगा, लेकिन यह समझ में नहीं आता है इस काल में । बेचारे, किसी का दोष है ही नहीं इसमें । शब्द तो सही लिखे हुए हैं। इसमें थोड़ा बहुत भेद रहेगा, अपने विज्ञान में और इसमें भेद रहेगा। इन दोनों के एक सरीखे अर्थ नहीं आएँगे कभी भी क्योंकि वह क्रम है और यह अक्रम है। अपने यहाँ पर ये सब ज्ञान लेकर गए हैं न, इसलिए हमने आपसे कह दिया कि 'कर्म नहीं बंधते । ' इसलिए ऐसा कहा कि 'ये सभी नोकर्म हैं।' तू चिढ़ भी जाता है, उसे भी हमने नोकर्म कहा है। बोलो, अब ये लोग ये सब कैसे मानें, फिर तो वे चिढ़ेंगे, लकड़ी लेकर पीछे दौड़ेंगे न! प्रश्नकर्ता : उन नो कषायों को आपने नोकर्म कहा, तो अनंतानुबंधी कषाय के चतुष्क, प्रत्याख्यानी कषाय के चतुष्क, अप्रत्याख्यानी कषाय के चतुष्क, इन्हें क्या कहा जाएगा? दादाश्री : हाँ, वे तो भावकर्म हैं ही। उसमें अन्य कोई मत नहीं है कि चाहे अनंतानुबंधी हों या कुछ भी, लेकिन वे भावकर्म हैं।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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