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________________ बिंद का आवरण आने पर उसे दिखाई नहीं देता, उसी तरह आत्मा पर आवरण आने पर जैसा है वैसा दिखाई नहीं देता । बचपन में सभी उसे कहते हैं कि 'तू चंदू, ' तब पहले धीरे-धीरे उसे श्रद्धा में आता है, वह है दर्शनावरण | फिर उसे ज्ञान में फिट हो जाता है, अनुभव हो जाता है, वह है ज्ञानावरण । ज्ञानावरण और दर्शनावरण, दोनों इकट्ठे होने से मोहनीय उत्पन्न होती है । फिर संसार का पूरा ही व्यापार शुरू हो जाता है । फिर अंतराय डलते हैं । दर्शनावरण से सूझ नहीं पड़ती । तप करता है, ध्यान करता है, उससे थोड़ा आवरण हटता है, तब फिर कुछ सूझ पड़ती है। सूझ पड़ना नहीं पड़ना वह दर्शनावरण कर्म कहलाता है । सूझ वह द्रव्यकर्म है। कई बहनें डेढ़ घंटे में पूरा भोजन बना देती हैं और कई तीन घंटों तक उलझती रहती हैं। वह दर्शनावरण की वजह से है । मनपसंद मेहमान आएँ और हम खुश हो जाएँ तो सूझ ज़्यादा पड़ती है और नापसंद आ जाएँ तब कहें कि 'अरे, ये अभी कहाँ से!' तो उससे सूझ कम हो जाती है! इस तरह हम खुद ही अपने आप पट्टी बाँधते हैं । समझ और सूझ में क्या फर्क है? समझ को सूझ कहते हैं। समझ अर्थात् दर्शन। वह बढ़ते-बढ़ते ठेठ केवलदर्शन तक पहुँचता है ! दर्शन ऊँची चीज़ है। जैसे-जैसे समसरण मार्ग में आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे उसका डेवेलपमेन्ट बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे दर्शन बढ़ता जाता है। ऐसे करते-करते भीतर प्रकाश होता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ, चंदूभाई नहीं, ' तब दर्शन निरावरण हो जाता है! जैसे-जैसे आवरण हटता है वैसे-वैसे सूझ बढ़ती है। आत्मा का एक भाग जो कि आवृत है, उस आवरण में से उदित हुआ भाग सूझ है और वही दर्शनावरण कहलाता है। और उसी में से सूझ बढ़ते-बढ़ते आखिर में सर्वदर्शी बन जाता है! व्यवहार में ज्ञानावरण व दर्शनावरण को कैसे पहचाना जा सकता है? 38
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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