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________________ [२.१२] द्रव्यकर्म + भावकर्म २९५ दादाश्री : हाँ, सूक्ष्म शरीर में सारी इलेक्ट्रिसिटी ही होती है । जलती है मोमबत्ती और झरता है मोम जिन्होंने ज्ञान नहीं लिया हैं, उनके अब दूसरे नए द्रव्यकर्म बंध रहे हैं। वे किस आधार पर बंधते हैं ! तो वह है, 'भावकर्म से दूसरे नए बंधते हैं और इस जन्म के जो द्रव्यकर्म हैं, वे जो विलय होते हैं, वे विलय होते जाते हैं तब अगले जन्म के नए भावकर्म अंदर झरते रहते हैं। जैसे मोमबत्ती जलती है तब उसका मोम झरता रहता है न, तो इसमें से भी भाव झरते रहते हैं। है ? पूरा जगत् भावकर्म पर टिका हुआ है और उसी से नए द्रव्यकर्म बंधते रहते हैं और उसमें से वापस भावकर्म उत्पन्न होते हैं। वापस द्रव्यकर्म बंधते हैं, और ऐसा चलता ही रहता है। प्रश्नकर्ता : और उन कर्मों के फल स्वरूप यह शरीर उत्पन्न होता I दादाश्री : कषायों से भावकर्म होते हैं और भावकर्म होने से कर्म तो बंधेगे ही। वे वापस अगले जन्म में फल देने को तैयार हो जाते हैं। भावकर्म में से द्रव्यकर्म बन जाते हैं । द्रव्यकर्म बनते हैं तब क्या होता है? सभी बँट जाते हैं, उनके आठ विभाग हो जाते हैं । उनमें से इतना ज्ञानावरण में, इतना दर्शनावरण में, इतना मोहनीय में और इतना अंतराय में, इतना नाम में, इतना वेदनीय में, इतना आयुष्य में और इतना गोत्र में। उन द्रव्यकर्म में से भावकर्म होते हैं, वर्ना अगर द्रव्यकर्म साफ हो जाने के बाद भावकर्म होते ही नहीं । अतः हमने दर्शनावरण और मोहनीय खत्म कर दिया है। उससे दृष्टि बदल गई इसलिए भावकर्म खत्म हो गया है। पूरा ही भावकर्म खत्म हो गया है। द्रव्यकर्म के बीज में से फल भावकर्म का भावकर्म हमेशा द्रव्यकर्म में से उत्पन्न होते हैं लेकिन जब तक
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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