SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९४ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) है। जैसे कि अगर हम दर्पण के सामने हाथ ऊँचा करें तो वह दिखाता है न, ऐसा ही है, बस। तुरंत वैसा ही हो जाता है। हम हाथ ऊँचा करें तो वह तुरंत ही दिखाता है न? वैसा हो जाता है। अतः यह शब्द बहुत समझने जैसा है, बहुत गहरा शब्द है, लेकिन क्रमिक मार्ग में! यहाँ इसमें तो ज़रूरत है नहीं न हमें तो। मैंने आपका उपचार, अनुपचार वगैरह सब निकाल दिया है। रटने को कुछ रखा ही नहीं है। दूसरे दिन से ही आत्मा के अनुभव सहित घूमने लगते हो। इलेट्रिकल बॉडी और कषाय प्रश्नकर्ता : अब क्रोध-मान-माया-लोभ को भावकर्म कहा है। एक बार इस तरह बात निकली थी कि सूक्ष्म शरीर के आधार पर क्रोध-मानमाया-लोभ होते हैं। दादाश्री : हाँ, वह ठीक है। वहाँ पर सूक्ष्म शरीर ही है न! इलेक्ट्रिकल बॉडी से परमाणु चार्ज भी होते हैं और उससे जलन-जलनजलन ! ऐसा होता है न, परमाणु। प्रश्नकर्ता : तो फिर भावकर्म और सूक्ष्म शरीर इन दोनों में क्या संबंध है? दादाश्री : कोई लेना-देना नहीं है। सूक्ष्म बॉडी खाना पचाती है, ऐसा सबकुछ करती है, खून को ऊपर चढ़ाती है। प्रश्नकर्ता : फिर भी यह क्रोध-मान-माया-लोभ का आधार बन जाता है? दादाश्री : आधार इलेक्ट्रिकल बॉडी नहीं है। इलेक्ट्रिसिटी कहाँ से आती है? इलेक्ट्रिसिटी की ज़रूरत है न! ये परमाणु इलेक्ट्रिसिटीवाले हैं, तभी जलन होती है न हमें! इलेक्ट्रिसिटी से चार्ज हुए हैं, तभी तो जलन होती है न! प्रश्नकर्ता : तो उस समय सूक्ष्म शरीर की इलेक्ट्रिसिटी काम आती होगी?
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy