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________________ [२.११] भावकर्म २७७ (कुदरत के) बैंक में से यहाँ आज ही निकालकर (ओवरड्राफ्ट) खर्च कर देता है और बेटे के लिए दो लाख इकट्ठे करके बेटे से कहता है, 'तू खर्च करना, हाँ।' अरे भाई, लेकिन अगले जन्म में क्या करेगा तू! अरे अभागे अपने आप ही आने दे न, नैचुरल ही। बिना बात की जुताई क्यों कर रहा है, इतनी आमदनी है फिर भी? अतः यों आते हुए को बिगाड़ा। इसलिए यह लोभ भावकर्म कहलाता है। भावकर्म तो, जो खुद की स्थिरता को तोड़ दें, खुद का भान तोड़ दें, वे सभी भावकर्म हैं। अतः ये क्रोध-मान-माया-लोभ खुद का भान गँवा देते हैं। लोभी लोभ के भान में रहता है, बाकी सभी भान उसके टूट चुके होते हैं, इसीलिए उसे लोभांध कहते हैं न! सिर्फ लोभ में ही दिखाई देता है और बाकी सभी जगह पर बिल्कुल अंध। बेटियाँ घूमती रहती हों तो उसमें उसे कोई आपत्ति नहीं होती, वह खुद लोभ में ही घूमता रहता है। जो चार कषाय हैं, वही भावकर्म हैं। अन्य कुछ भी नहीं। प्रश्नकर्ता : कोई भी चीज़ इन चारों में फिट हो जाए तो वह भावकर्म दादाश्री : हाँ, जो चारों में फिट हो जाएँ वे सभी भावकर्म हैं। उनके अलावा अन्य कोई और भावकर्म है ही नहीं। प्रश्नकर्ता : ये क्रोध-मान-माया-लोभ के परमाणु इनमें मिल जाएँ, तभी भावकर्म उत्पन्न होता है न? दादाश्री : नहीं, ये जो क्रोध-मान-माया-लोभ हैं, वही भावकर्म हैं। ये जो प्रकट दिखाई देते हैं, वे ही भावकर्म हैं, अगर हिंसक भाव सहित हों तो। और अगर हिंसक भाव नहीं होता तो क्रोध-मान-माया-लोभ भावकर्म नहीं कहलाते हैं। डिस्चार्ज भाव भावकर्म नहीं कहलाते। भावकर्म जीवंत होते हैं यानी कि मिश्रचेतन होते हैं। यह वैज्ञानिक प्रयोग है न, इसमें और कुछ भी नहीं चलेगा। और कुछ एडजस्ट भी नहीं होगा न! जहाँ पर विज्ञान ही हो, वहाँ पर विरोधाभास नहीं होता। विरोधाभास क्रमिक मार्ग में
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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