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________________ [२.१०] घाती-अघाती कर्म २५९ प्रश्नकर्ता : लेकिन द्रव्यकर्म तो उदयाधीन है न? दादाश्री : वह उदयाधीन । द्रव्यकर्म तो दिनोंदिन उदय होकर खत्म ही हो रहा है, एक्ज़ोस्ट हो रहा है । निरंतर द्रव्यकर्म एक्ज़ोस्ट होते रहते हैं और एक दिन कहेंगे कि 'ये एक्ज़ोस्ट हो गए ।' प्रश्नकर्ता : जो प्रकृति गुथ चुकी है, उसमें जो द्रव्यकर्म हैं, क्या उन्हें एक्ज़ोस्ट होने में कुछ ज़्यादा देर लगती है? दादाश्री : वे तो अपने टाइम पर एक्ज़ोस्ट हो ही जाएँगे। उसका टाइम के साथ लेना-देना है । सोते समय भी एक्ज़ोस्ट हो जाते हैं, जागते हुए भी हो जाते हैं। घाती हैं पट्टियों के रूप में अघाती देहरूपी ये सभी आठ कर्म जो हैं, वे द्रव्यकर्म हैं । इन आठ कर्मों में से चार घाती और चार अघाती हैं । उनमें से जो चार घाती हैं, वे चश्मे हैं और जो चार अघाती हैं, वह देह का भोगवटा है । उन कर्मों के अधीन द्रव्यकर्म के चश्मे बनते हैं। अब यह आधार, उन चश्मों को हमने खत्म कर दिया है, वर्ना उसका कब अंत आता ? सभी योनियों में भटक आए तब जाकर अंत आता है उन चश्मों का । उल्टे चश्मे और देह, दोनों अलग चीजें हैं। जब हम यह ज्ञान देते हैं न, तब उन उल्टे चश्मों को निकाल देते हैं लेकिन इस देह द्वारा भोगे जानेवाले कर्म नहीं निकलते, उन्हें भोगना ही पड़ता है। इनमें से जो उत्पन्न होनेवाले नोकर्म हैं, उन्हें भोगना ही पड़ता है I , प्रश्नकर्ता : 'ये जो चार कर्म हैं वे आत्मा का घात करते हैं, इसका क्या मतलब है? दादाश्री : पहला ज्ञानावरण है, उसके बाद दर्शनावरण है, उसके बाद मोहनीय और अंतराय । ये चारों घातीकर्म कहलाते हैं । जब तक ये चारों हैं, तब तक आत्मा का घात होता रहता है। उससे आवरण आता ही रहता है । और बाकी के चार अघाती हैं । अघाती अर्थात् उनसे आत्मा पर आवरण
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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