SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२.१०] घाती-अघाती कर्म निरंतर विलय रहते हैं द्रव्यकर्म यह शरीर क्या है? यह किससे बना हुआ है? तो कहते हैं कि आठ कर्मों की पोटली है यह तो। जैसे मोमबत्ती में दो-तीन कर्म होते हैं, वैसे ये आठ कर्म हैं। मोमबत्ती में क्या-क्या कर्म हैं? तो एक तो धागा है। और वह धागा भी ऐसा, जो जले। फिर उस धागे को जो जलाए रखता है, वह है मोम। तीसरा-खुद जलकर खत्म हो जाता है, ऐसा आयुष्य लेकर आएँ हैं। यह मोमबत्ती भी आयुष्य लेकर आई हुई है। तो देखो, एक तो धागा, एक उजाला, मोम और आयुष्य। उसके चार हैं अपने आठ। उसमें घातीकर्म नहीं होते। उसके भी आघाती हैं और अपने भी अघाती हैं-चार। वह अगर जीवित होती तो घातीकर्म होते। यानी कि ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय, ये सब घातीकर्म हैं। ये आत्मा का घात करते रहते हैं। लेकिन इस मोमबत्ती का तो बहुत अच्छा उदाहरण दिया है। अभी तक ऐसा शास्त्र में किसी भी जगह पर नहीं दिया गया है। पहली बार, फर्स्ट टाइम कहा गया है यह! द्रव्यकर्म, वह मोमबत्ती है और यह द्रव्यकर्म रूपी मोमबत्ती जलती ही रहती है निरंतर। अब इसमें तो किसी को कुछ करना नहीं पड़ता न? मोमबत्ती तो अपने आप कुदरती रूप से जल ही रही है। जब से जन्म हुआ तभी से जलने की शुरुआत हो ही गई है इसलिए आपको इसे जलाना नहीं पड़ेगा। अपने आप जलते-जलते-जलते खत्म हो जाएगी। अतः आयुष्य कर्म पूरा होने पर खत्म हो जाएगी। अतः आठों कर्म, वे द्रव्यकर्म खत्म हो जाएँगे और नए बाँधे हुए द्रव्यकर्म अगले जन्म के लिए साथ में ले जाएगा।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy