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________________ [२.९] आयुष्य कर्म २४७ कितने ही प्रकार के पुण्य हों तब जाकर आयुष्य लंबा होता है उसका, नहीं तो आयुष्य कर्म छोटा होता है। जबकि लोग क्या कहते हैं कि जिनकी यहाँ पर ज़रूरत है, उनकी वहाँ पर भी ज़रूरत है। ऐसी सब बातें करते हैं। यह है आयुष्य स्थिति । पुण्यशालियों का आयुष्य लंबा होता है। ज़रा कम पुण्य हो तो आयुष्य बीच रास्ते में टूट जाता है। अब अगर कोई व्यक्ति बहुत पापी हो और उसका आयुष्य लंबा हो तो हमें लगता है कि, 'ओहोहो! पापी इंसान और इतना लंबा आयुष्य!' हम अगर भगवान से पूछे कि 'पापी का आयुष्य कितना हो तो अच्छा माना जाएगा?' तब वे कहते हैं 'जितना कम जीए उतना अच्छा' क्योंकि वह पाप के ऐसे संयोंगों में है। अगर वह कम जीएगा तो वे उसके संयोग बदलेंगे। लेकिन वह कम नहीं जीता है! यह तो लेवल निकालने के लिए हमसे पूछते हैं। सौ साल भी पूरे करे और इतने सारे पाप के दौने इकट्ठे करके कितनी ही गहराई में जाएगा, यह तो वही जाने और जो पुण्यशाली व्यक्ति है, वह ज्यादा जीए तो बहुत अच्छा है। कर्म के ताबे में है विल पावर प्रश्नकर्ता : तो दादा, क्या आयुष्य के लिए विल पावर काम करती दादाश्री : नहीं, विल पावर तो कर्म के साथ एडजस्ट (अनुकूल) हो जाती है। विल पावर के ताबे में नहीं है यह कर्म। कर्म के ताबे में विल पावर है। अतः सभी लोग कहते हैं कि मेरी विल पावर है। अरे, लेकिन कर्म के ताबे में है तेरी विल पावर। अतः अपने हाथ में सत्ता नहीं है। एक जन्म की सत्ता गई। दूसरे जन्म में बदली जा सकती है। मृत्यु है कर्मों का सार प्रश्नकर्ता : मृत्यु का स्थल और समय, वगैरह निश्चित होता है? दादाश्री : निश्चित के बिना तो हो ही नहीं सकता। मुख्य तो इसमें
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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