SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : केवलज्ञान होने के बाद भी कुछ समय तक शरीर रह सकता है? २४६ दादाश्री : अच्छी तरह रहता है, कहाँ जाएगा? आयुष्य कर्म पूरा हो जाने पर शरीर छूट जाता है। भगवान महावीर को लगभग बयालीस साल की उम्र में केवलज्ञान हुआ था । बहत्तर साल तक जीए । वे तीस साल खुद का आयुष्य कर्म पूरा करने के लिए थे। कोई चारा ही नहीं न! वह छोड़ता ही नहीं है न! वह बंधन है एक तरह का । हम लंबे आयुष्य की भावना क्यों रखते हैं ? लोगों के, जगत् कल्याण के लिए । आप सब के संसारी सुख के लिए नहीं, लोगों का कल्याण हो, अपना कल्याण हो ऐसा ! शरीर मरता है, 'खुद' नहीं आयुष्य कर्म क्या काम करता होगा? 'हम' 'आत्मा' के रूप में अमर हैं। इसके बावजूद भी ऐसा भान है कि 'मैं चंदूभाई हूँ ।' मूर्च्छित भाव है, इसलिए उसे ऐसा लगता है 'मैं मर जाऊँगा ।' खुद का स्वरूप मरे ऐसा नहीं है। अमर है लेकिन उसका भान नहीं है, यानी कि ऐसा मानता है कि यह जो मर जाता है वैसे स्वरूप में 'मैं हूँ।' पूरा जगत् ऐसा ही मानता है और वह खुद भी ऐसा ही मानता है और साधु-साध्वी भी मानते हैं न और उनके आचार्य भी ऐसा मानते हैं कि मैं मर जाऊँगा, मैं मर जाऊँगा । अरे भाई, आप कैसे मर जाओगे? शरीर मरेगा। जिसकी अर्थी निकालेंगे, वह मरेगा। आप कैसे मर सकते हो? तो कहते हैं, 'नहीं, मैं मर जाऊँगा। डॉक्टर साहब, मुझे बचाना।' अरे, डॉक्टर की बहन मर गई और डॉक्टर के पिताजी भी मर गए हैं। डॉक्टर साहब कैसे बचाएँगे? डॉक्टर की बहन नहीं मर गई थीं? अतः यह जो है वह आयुष्य कर्म है। पुण्य के आधार पर लंबा या छोटा आयुष्य कोई पचास साल की उम्र में मर जाता है, कोई तीस साल की उम्र में मर जाता है और कोई नब्बे साल का भी हो जाता है । यह आयुष्य के आधार पर है। आयुष्य का छोटा या लंबा होना, यह सब द्रव्यकर्म है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy