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________________ पुरुष आत्म स्वभाव का भोक्ता है और विशेषभाव का (सुख-दुःख का) भोक्ता अहंकार है। जीवात्मा से अंतरात्मा और अंत में परमात्मा। पुरुष अंतरात्मा है और जो पुरुषोतम है, वह है परमात्मा। पुरुष होने के बाद अपने आप ही पुरुषोत्तम बनता जाएगा। [ १.१०] प्रकृति को जो देख रहा है, वह है परमात्मा प्रकृति को जो निर्दोष देखता है, वह परमात्मा। उस समय आनंद, मुक्तानंद मिलता है! दो प्रकार के पारिणामिक ज्ञान हैं। एक आत्मा का और दूसरा प्रकृति का। प्रकृति के पारिणामिक ज्ञान को निर्दोष देखा तो छूट जाते हैं। नहीं तो उलझन में पड़ जाते हैं! कौन सा भाग निर्दोष दिखाता है? केवलज्ञान के अंश। कोई गालियाँ दे तो ज्ञानी को कैसा रहता है? यह मेरे उदय का स्वरूप है और उसका भी उदय स्वरूप है। उसे वे निहारते हैं। ज्ञानी जीवमात्र को शुद्ध स्वरूप से देखते हैं और प्रकृति को उदय स्वरूप से निहारते हैं! अर्थात् आत्मा से आत्मा को देखते हैं और देह दृष्टि से उदय स्वरूप को देखते हैं! प्रकृति को निरंतर देखने में रुकावट किससे? आवरण से। ये आवरण टूटेंगे कैसे? ज्ञानी के चरणों में प्रत्यक्ष विधियाँ करने से आवरण टूटते जाएंगे। ज्ञानी को विधि करते समय होनेवाली सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भूलें दिखाई देती हैं। जो किसी के लिए भी परेशानीवाली नहीं होतीं। उन्हें वे तुरंत ही धो देते हैं। प्रकृति को जाना, वहीं से भगवान बनने की शुरुआत हुई और जानने के बाद जो प्रकृति को पूर्ण रूप से खपा दे, समभाव से निकाल करके तो वह भगवान बन जाएगा! प्रकृति को खपाना, इसका क्या अर्थ है? उसे समभाव से खपाना है। मन को विचलित नहीं होने देना है। 33
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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