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________________ [२.७] नामकर्म २३३ तो वे वापस आ जाएँगे क्योंकि यशनाम कर्म लेकर आया हूँ। हाथ लगाते ही काम हो जाता है। निबेड़ा आ जाता है सभी का । यशनाम कर्म नहीं हों तो लोगों को उलझन हो जाए, बेचारों को ! प्रश्नकर्ता : यशनाम कर्म तो आप बहुत लेकर आए हैं। दादाश्री : मैं भी देखता हूँ न और तभी तो इन लोगों को शांति रहती है, वर्ना कैसे रहे ऐसे दुषमकाल में, दुःख - मुख्य काल ! अर्थात् एक बार यह ज्ञान होने से पहले एक व्यक्ति मुझसे कहने आया कि ‘आपकी वजह से मेरा सारा काम हो गया ।' तब मैंने कहा, 'भाई, मैं तो नहीं जानता। कौन सा काम हो गया? तब मुझसे कहने लगे 'वह तो आप यों ही कह रहे हैं। आप थे, तभी यह काम हुआ। आपने ही किया है यह।''भाई, मैंने नहीं किया, मैं कुछ नहीं जानता इसमें ।' तब कहने लगे कि ‘मेरी बेटी का कोई मेल नहीं बैठ रहा था, तो आपने फूँक मारकर बिठा दिया। आपने सिफारिश की ।' तब मुझे विचार आया कि किसी व्यक्ति ने इसका काम किया होगा, तो यह पोटली उसे देने की बजाय, यहाँ पर देने आ गया। यह भूल हो गई है, इस व्यक्ति से । यह यश की पोटली, जिसने काम किया है, उसे देने के बजाय यहाँ देने आ गया वह । मैंने उसे कहा, 'भाई, यह मेरी पोटली नहीं है। यह काम किसी और ने किया है तो तू वहाँ जाकर दे आ।' तब कहने लगा 'मैं तो यह रखकर चला, आपने ही किया है।' दूसरे दिन उसका काम करनेवाला व्यक्ति मुझसे मिला, तब कहने लगा कि 'मैंने इसका कितना - कितना किया, फिर भी अपयश दे रहा है। वह पोटली मेरे पास से ले ली ।' ऐसा तूफान चलता रहता है। बचपन से ही, मेरे कुछ किए बिना भी लोग आकर मुझे दे जाते हैं और कैसे भी करके पोटली डाल ही जाते हैं । डालकर चले जाते हैं। तो उसमें क्या हो सकता है? इसलिए मैं समझ गया कि यह यशनाम कर्म है। प्रश्नकर्ता : फिर उस पोटली का आप क्या करते हैं? दादाश्री : कुछ भी नहीं, हम उसकी विधि करके वापस उसे सौंप देते हैं क्योंकि उसे हम रखते नहीं हैं । और हमने किया हो फिर भी हम
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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