SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) करते हैं। हमारा ऐसा हो गया और आपने वह किया उसके बाद से हमारा वैसा हो गया है न!' मैंने कहा, 'अरे भाई, यदि मैं चमत्कार कर सकता, तो मुझे खुद को ही श्वास चढ़ता है, तो क्या मैं उसे नहीं मिटा देता?" २३२ I एक बार हमारे भादरण गाँव में गया था तो एक बयासी साल के चाचा थे, वे बहुत भक्ति भाववाले थे। तो वे मुझे देखते ही उल्लास में आ जाते थे, बयासी साल की उम्र में भी । फिर ऐसा पता चला कि 'मैं गाँव में आया हूँ' तो उनके मन में हुआ कि 'मैं घर में बैठा रहूँगा तो मुझे उनका चेहरा देखने में देर लगेगी' इसलिए रास्ते के बीच में बैठे रहे । ताकि हमारे गली में पहुँचते ही उन्हें दर्शन हो जाएँ न ! इतने अधिक भाववाले तो फिर मैं वहाँ पर गया तो मेरे पैर पकड़ लिए, 'दादा भगवान, दादा भगवान!' तब मैंने ऐसे किया, ऐसे। पीठ थपकाने से क्या हुआ कि जैसे एक कहावत है, हवा चलने से खपरैल गिरी और उसे देखकर कुत्ता भोंका । लेकिन उन्हें क्या हुआ कि बारह साल से उन्हें पीठ का जो दर्द था, वह दूसरे दिन से ही मिट गया। तो उन्होंने पूरे गाँव में बता दिया कि 'दादा ने मेरा बारह साल का दर्द मिटा दिया, एक थपकी लगाते ही।' इससे फिर गाँव के लोग मेरे यहाँ आने लगे। और खास तौर पर जो दबाव डाल सकते थे, वे जल्दी आ गए। मुझे कहने लगे कि 'मेरा इतना तो कर ही दीजिए। मैंने कहा, 'आप समझो तो सही। जब मेरा जुलाब अटक जाता है, तब मैं फाकी लेता हूँ। तब जाकर उतरता है। इसलिए यह तो वह..... I प्रश्नकर्ता : कौए का बैठना और डाल का गिरना.... दादाश्री : हाँ, हाँ, बस । हमने तो एक बार थपकी लगाई और उसका ऐसा होना था, वह हो गया । यशनाम कर्म अर्थात् यश मिलता है। कुछ भी न करे, फिर भी इन्हें यश मिलता है। और फिर कितने ही लोगों का अपयश नामकर्म होता है । तो वे आपका सौ बार काम करें, तब भी आप कहते हो कि ‘नहीं, वह कुछ भी नहीं करता है मेरे लिए ।' ऐसा होता है या नहीं होता? आपके सर्वस्व दुःख मुझे सौंप जाओ, फिर अगर याद नहीं करोगे तो आपके पास नहीं आएँगे, उसकी मैं गारन्टी देता हूँ । आप याद करोगे
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy