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________________ २१२ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : शाता को भी वेदनीय कहा है? दादाश्री : शाता को वेदनीय ही कहते हैं न ! ये लोग जिसे सुख और जिसे दुःख कहते हैं, उसे भगवान ने वेदनीय कहा है। सिर्फ असर ही है। वेदना है एक प्रकार की । प्रश्नकर्ता : हम तो ऐसा मानते हैं कि जब दुःख कम हो जाए तो वह सुख है। आप कहते हैं कि 'सुख वेदना है, ' तो यह समझ में नहीं आया । दादाश्री : जो दुःख कम हो जाए, वह सुख नहीं है। दो दु:खों के इन्टरवल को लोग सुख कहते हैं । दो दु:खों के बीच, एक दुःख का अंत आया और दूसरा दुःख अभी तक शुरू नहीं हुआ है, तब तक उसे सुख कहते हैं । लिख लेना ये शब्द | यह इन्टरवल किसमें होता है? नाटक में । अतः वास्तव में यह सुख नहीं है, यह वेदना है । प्रश्नकर्ता : तो वास्तव में सुख किसे कहते हैं ? दादाश्री : खरा सुख तो जो आनंद है, आत्मा का आनंद होता है, वह है। वेदना किसलिए कहते हैं क्योंकि जिस-जिस चीज़ से सुख होता है, वह जब ऐब्नॉर्मल हो जाए तब दुःख रूप हो जाती है। अभी खीर खाने में मज़ा आता है लेकिन अगर पेट में ज़्यादा डाल दे तो? प्रश्नकर्ता : हाँ, तो दुःख हो जाता है । दादाश्री : अत: जो ऐब्नॉर्मल हो जाए, वह सारा वेदनीय कहलाता है और जो बिल्कुल भी ऐब्नॉर्मल नहीं होता, वह सब सुख कहलाता है। आत्मा का सनातन सुख कभी भी नहीं जाता, किसी भी संयोग में नहीं जाता। निरंतर परमानंद रहता है । स्वाभाविक सुख आपने चखा है किसी भी जन्म में? क्या वह चखना नहीं चाहिए? प्रश्नकर्ता : लेकिन ज्ञानी तो अशाता को भी दुःख नहीं मानते ।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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