SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'अक्रम की सामायिक' में प्रकृति ज्ञेय और खुद उसका ज्ञाता है, इस तरह एक घंटे तक देखते रहने से प्रकृति विलय होती है। जो हर रोज़ ऐसा करे, उसका निबेड़ा जल्दी आ जाता है! [१.७] प्रकृति को ऐसे करो साफ ज्ञान मिलने के बाद प्रज्ञा प्रकृति के दोष दिखाती है और उसका प्रतिक्रमण करवाती है तो फिर साफ। 'प्रकृति लिखती है और पुरुष मिटाता जाता है।' प्रकृति टेढ़ा करे और उसके सामने हमारा आज का अभिप्राय मूल रूप से बदल जाए कि 'यह गलत है, ऐसा होना ही नहीं चाहिए,' वैसेवैसे प्रकृति हल्की होती जाएगी। प्रकृति विरोधी हो जाए और खुद उसके सामने जागृत रहे तो वे ज्ञानी कहलाते हैं। प्रकृति पर दबाव नहीं डालना चाहिए और उसी प्रकार वह नाचे तो उसे नाचने भी नहीं देना चाहिए। प्रकृति नुकसानदेह है ऐसी समझ दृढ़ हो जाए तो उसकी वृत्तियाँ बंद हो जाएँगी। प्रकृति जो करवाए उसमें रुचि ले, मिठास का आनंद ले तो वह भटका देगी। अतः प्रकृति को उदासीन भाव से देखते ही रहो। हाँ, किसी को नुकसान नहीं हो, वह भी देखना है! ___शुरुआत में महात्मा दोषों से मुक्त होने के लिए दादाश्री से सभी बातें बताते हैं और फिर जब प्रकृति की मिठास महसूस होती है, तब धीरे-धीरे सारा छुपाने लगते हैं। प्रकृति का रक्षण नहीं करना चाहिए, लेकिन उसे माफ कर सकते हैं। माफ करने में जुदापन है जबकि रक्षण करने के लिए उसी के पक्ष में बैठ जाते हैं। जो प्रतिक्रमण करती है वह प्रकृति है और जो माफ करते हैं, वे भगवान हैं! प्रकृति को किस तरह से माफ किया जा सकता है? उस पर चिढ़ें 28
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy