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________________ कर्तापन चला जाता है इसलिए सिर्फ स्वभाव ही रह जाता है। इससे उसका स्वभाव एकदम बदला हुआ लगता है ! जैसे कि बॉल डालने के बाद अगर फिर से उसे नहीं छूएँ तो उसकी गति कम होते-होते वह रुक जाती है, वैसा ही प्रकृति का होता है! जैसे कि बाप अगर बेटे पर क्रोध करे और बाहर दुश्मन पर क्रोध करे, तो क्या उसमें फर्क नहीं है? बेटे पर वह उसके हित के लिए कर रहा है और दुश्मन के साथ खुद के हित के लिए कर रहा है ! कितना फर्क है?! इसीलिए तो, जब बेटे पर क्रोध करता है तब उससे बाप कैसे पुण्य बाँधता है! कर्तापन चले जाने के बाद क्रोध निर्जीव लगता है। बिच्छू के डंक के बजाय वह चींटी और मच्छर जैसा लगता है! प्रकृति का रक्षण नहीं करना चाहिए और रक्षण हो जाए तो उसे भी 'जानना' चाहिए क्योंकि जो रक्षण करती है वह भी प्रकृति है! हमें प्रकृति दिखाई दे तो हम उस पर सवार और अगर नहीं दिखाई दे तो वह अपने पर! प्रकृति में अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं है। सिर्फ 'देखते' ही रहना है उसे। वह है अंतिम स्टेज! प्रकृति अगर ऐसी हो जाए कि मोड़ी जा सके तो ऐसा कहा जाएगा कि उसकी लगाम हाथ में आ गई। ___ यात्रा में प्रकृति पूरी तरह से बाहर आती है। रोज़ सात बजे उठनेवाला पाँच बजे उठकर कैसे भाग-दौड़ करता है? पहले टोइलेट में घुस जाऊँ नहीं तो नंबर नहीं आएगा! स्वार्थ आ गया। उसमें भी हर्ज नहीं है लेकिन वह उसे दिखाई देना चाहिए कि प्रकृति में ऐसा स्वार्थ है ! ऐसी जागृति रहनी चाहिए कि ऐसा नहीं होना चाहिए।' सेवाभाव से स्वार्थी प्रकृति खपती जाती है! दादाश्री ने पूरे जगत् को एक महान वाक्य दिया है कि 'प्रकृति का एक भी गुण शुद्ध चेतन में नहीं है और शुद्ध चेतन का एक भी गुण प्रकृति में नहीं है।' 27
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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