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________________ १८६ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : दादा, कई बार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति बहुत कष्ट पा रहा हो और कोई ऐसा कहे कि, 'भाई, मेरी एकादशी का पुण्य मैं इन्हें देता हूँ, यदि इनका छुटकारा हो जाए तो!' गाँव में ऐसा कहते हैं, तो वह क्या कहलाता है? दादाश्री : हाँ, वह निमित्त है। नैमित्तिक ऐसा हो सकता है और न भी हो। साइन्टिफिक लॉ नहीं है ऐसा कि ऐसा होने पर होगा ही। देखो न, इस काल में कई महान पुरुष कम उम्र में ही चले गए। उन्होंने आयुष्य के कितने अधिक अंतराय डाले होंगे! प्रश्नकर्ता : वे कैसे डाले थे? दादाश्री : उसका विरुद्ध प्रकार, समझ जाओ न! कई महान पुरुष जो थे न, वे काफी कुछ इस तरह के थे। तीर्थंकरों को ऐसा नहीं होता। भगवान महावीर की आयु बहत्तर साल की थी। बहत्तर साल का आयुष्य फुल (पूरा) माना जाता है। बहत्तर साल से ज्यादा के सभी फुल माने जाते हैं, इस काल में! शुभ आयुष्य नहीं, अशुभ आयुष्य। तो उससे आयुष्य कर्म टूट जाता है। शुभ आयुष्य हो तो भोग लेता है। कृष्ण भगवान साढ़े नो सौ साल तक जीए थे। साढ़े नो सौ साल फिर भी पचास कम पड़े थे। आयु पूरी नहीं हुई थी। वह बाण लगा था न! आयु एक्जेक्टली पूरी नहीं हुई लेकिन फिर भी नौ सौ पचास यानी वह पूरा ही कहलाएगा! एकावन सौ साल पहले हज़ार साल की आयु होती थी। भगवान महावीर के समय से सौ साल की आयु। पहले ज़्यादा थी, अब आयु वगैरह सब कम होती जा रही है न! धर्म में अंतराय हन्ड्रेड परसेन्ट दर्शन है अपना। अर्थात् तीन सौ साठ डिग्री का दर्शन है अपना और अभी ये सभी धर्म एक-दूसरे के विराधक हैं। किसी धर्मवाले आपसे क्या कहते हैं, 'अरे, माताजी के पास जाओगे तो मिथ्यात्वी हो
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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