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________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) शक्तिवाला है तो तुझे ऐसा सोचने की ज़रूरत ही कहाँ रही?' जिस तरह से चल रहा है उसे ईज़िली ( सरलता से ) देखता रह न चुपचाप ! 'मैं क्या करूँ,' कहता है। ‘वहाँ पर किराया कम पड़ जाएगा तो लॉज में कैसे जाऊँगा?' अरे, घनचक्कर! ऐसा नहीं कहते । सबकुछ तैयार ही है वहाँ पर । ऐसा कहना, वही उसके अंतराय हैं और फिर क्या वे उसे फल नहीं देंगे? अंतराय डालनेवाला खुद ही है। १७६ हम ऐसा एक भी अक्षर नहीं बोलते। हमें अंतराय हैं ही नहीं । निअंतराय पद में हैं हम | सभी चीजें यों जहाँ बैठे हों, वहाँ पर हाज़िर हो जाती हैं। उस चीज़ के बारे में सोचा तक नहीं हमने, फिर भी हाज़िर हो जाती है। आपके साथ ऐसा क्यों नहीं होता? क्योंकि अंतराय डाले हैं। 'यह मुझे मालूम नहीं है, यह मुझ से नहीं होगा, ' कहा तो फिर वह चीज़ क्या कहती है? ‘तुझे मालूम नहीं है तो बेवकूफ यों ही बैठा रह। मेरा अपमान क्यों कर रहा है?' ये सब जो चीजें हैं न, वे मिश्रचेतन हैं। यह जो लकड़ी है वह मिश्रचेतन से बनी हुई है । यह भी पुद्गल है । ये परमाणु नहीं हैं। यह तो पुद्गल है। उस पर भी यदि कभी आप द्वेष करोगे तो उसका आपको फल मिलेगा। अगर कहोगे कि 'यह फर्नीचर मुझे अच्छा नहीं लगा' तब फर्नीचर कहेगा 'तेरे और मेरे बीच अंतराय ।' दोबारा वह फर्नीचर नहीं मिलेगा, ऐसा नियम है । लोगों ने ही ये अंतराय डाले हैं। सभी जगह ये खुद के ही खड़े किए हुए अंतराय हैं। एक-एक शब्द पर अंतराय डालता है। बिल्कुल नेगेटिव बोलने से अंतराय पड़ते हैं लेकिन पॉज़िटिव से अंतराय नहीं पड़ते । अंतराय, इलाज करने में या सोचने में? प्रश्नकर्ता : अब अगर कोई रोग हो जाए फिर उस रोग को मिटाने के लिए जो इलाज करवाते हैं, तो वह जो उदयकर्म आया है उसी को खपाना है, उसका इलाज करवाने से क्या हम अंतराय डालते हैं ? दादाश्री : नहीं-नहीं। इलाज के बारे में सोचते हैं तो वह अंतराय है। दवाई लेना अंतराय नहीं है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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