SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२.४] मोहनीय कर्म १६५ दर्शनावरण पूरा टूट गया लेकिन अब क्या होता है? पहलेवाले जो कर्म आते हैं न, वे परेशान करते हैं उसे। इस दर्शन का लाभ नहीं लेने देते। वर्ना मेरी तरह आप भी देखकर बोलते लेकिन ये (आवरण) लाभ नहीं लेने देते। ये सब उलझा देते हैं। प्रश्नकर्ता : अभी भी यह माल बहुत भरा हुआ लगता है। दादाश्री : भरा हुआ ही है न, यह किस तरह का है कि किसी को ज्ञान दिया जाए और अगर उसे कहा जाए कि 'तू ज्ञान में रहना' तब कहता है, 'हाँ कल से ज्ञान में रहूँगा' और फिर बाहर जाकर हज़ारों लोगों से कुछ न कुछ पूछने के लिए भेजें तो फिर कितना ज्ञान में रहेगा? इन सब को भेजते रहें कि 'जाओ ऐसा पूछकर आओ, वैसा पूछकर आओ, फलाना पूछकर आओ,' तो फिर कितने समय तक रहेगा? इसी तरह ये सारे संयोग आपको परेशान (उलझाते) करते हैं। हमारे संयोग बहत नहीं हैं और हमारे सभी संयोग ज्ञेय स्वरूप से हैं। आप में भी वे ज्ञेय स्वरूप से ही हैं लेकिन आपको ज्ञेय रहने ही नहीं देते न, ये सभी (कर्म) बारी-बारी से आते हैं इसलिए। क्योंकि अक्रम है न! क्रमिक होता तब तो ये दिखते ही नहीं। क्रमिक अर्थात् सारा माल खपा चुके होते हैं। करोड़ों-करोड़ों जन्मों में भी यह माल नहीं खप सकता, इसका ठिकाना नहीं पड़ सकता। कब खप सकेगा यहाँ पर माल? कब ये लोग घर छोड़ेंगे और वहाँ पर दीक्षा लेंगे और कब ठिकाना पड़ेगा? 'नहींनहीं, गुरु जी, यह मेरा काम नहीं है। मेरी परिस्थिति ऐसी नहीं है कि मैं घर छोड़ सकूँ।' तो फिर क्या होगा? ऐसा कहते ही उसने दीक्षा के लिए अंतराय बाँध लिए। ज्ञानांतराय, दर्शनावरण बढ़ गया। यानी कि यह सारा जोखिम है। ___ यह तो अक्रम ज्ञान की बलिहारी है कि ऐसा कुछ उदय आया है। ऐसी अद्भुत बात तो सुनी ही नहीं होगी न! दर्शनावरण का एक अंश भी कम होना बहुत मुश्किल है। इस काल में बल्कि बढ़ता ही रहता है, वहाँ पर कम कैसे हो सकता है? दो प्रतिशत कम होता है और चालीस प्रतिशत उत्पन्न होता है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy