SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दादाश्री को १९७९ में पैर में फ्रेक्चर हो गया था। तब उन्होंने कहा था कि 'हम इसमें से हट गए हैं इसलिए कुदरत ने स्पीडिली रिपेयर कर दिया ये सब।' फ्रेक्चर हुआ लेकिन सभी डॉक्टर अचंभे में पड़ गए कि 'इनके मुख पर गज़ब का मुक्त हास्य है! निरावृत आत्मा दिख रहा है ! वेदना की कोई रेखा नहीं है मुख पर!' दादाश्री ने सभी डॉक्टरों से कह दिया था कि इस 'पेटी' को खोलने जैसा नहीं है। अपने आप ही रिपेयर हो जाएगी। इस ‘पेटी' को ऑपरेशन की ज़रूरत नहीं है। कुदरती नियम से बिगड़ा हुआ रिपेयर हो ही जाता है, जिसमें मालिकीपन नहीं हो, उसमें! ये डॉक्टर देह का जितना उपचार करते हैं, उससे ज़्यादा अच्छी तरह तो प्रकृति देह का उपचार करती है! अज्ञानी ऐसा कहता है कि 'मुझे बीमारी हो गई' तो हो जाती है दखल। बल्कि रोग बढ़ जाता है ! वर्ना स्वाभाविक रूप से वह ठीक हो ही जाता! प्रकृति का स्वभाव निरुपद्रवी है! वह तो बल्कि उपद्रव को बंद कर देती है! उपद्रव कर्मोदय के कारण होते हैं या फिर अहंकार वह करता है, तब। चोट लगते ही तुरंत ही अंदर की सारी मशीनरी फटाफट काम करने लगती है, उसे ठीक करने के लिए! कुदरत घाव भरती है, डॉक्टर तो सिर्फ साफ-सूफ करके पट्टी बाँधकर कुदरत को हेल्प करते हैं, बस इतना ही! [१.६ ] प्रकृति पर प्रभुत्व पाया जा सकता है प्रकृति को काबू में लाना, वह गुनाह है। प्रकृति परिणाम है। परिणाम पर किसी का काबू नहीं हो सकता। गुलाब चाहिए तो काँटों से सँभालकर काम लेना पड़ेगा। बाकी, भले ही कुछ भी कर लो लेकिन क्या काँटे किसी को छोड़ते हैं? स्वरूप ज्ञान होने पर भी प्रकृति काम कर ही लेती है। प्रकृति अर्थात् अनटाइमली बम। प्रकृति कुछ हद तक बदलती है। कॉज़ेज़ बदलने से प्रकृति हल्की पड़ जाती है। इसलिए प्रकृति अपना काम करती तो है लेकिन हल्की पड़ 24
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy