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________________ [ १.५ ] कैसे-कैसे प्रकृति स्वभाव भगवान को देखना है? जीव में से प्रकृति स्वभाव को घटा (माइनस कर) दे तो खुद भगवान ही है ! प्रकृति स्वभाव माइनस किस तरह किया जा सकता है? कोई गाली दे तो क्या वह गाली भगवान दे रहे होंगे? वह तो प्रकृति है। प्रकृति की प्रत्येक क्रिया को माइनस करते-करते अक्रिय भगवान मिल सकते हैं, ऐसा है ! नीम हमेशा कड़वा ही होता है। आम हमेशा मीठा या खट्टा ही होता है, तीखा नहीं होता। हर कोई अपने-अपने स्वभाव में ही है। सिर्फ ये मनुष्य ही न जाने कब कैसा स्वभाव बदल लें, वह कहा नहीं जा सकता । सामनेवाले की प्रकृति को पहचानकर समभाव से निकाल करना चाहिए। सामनेवाला ज़िद पर चढ़े तो क्या हम भी ज़िद पर चढ़ जाएँ ? प्रकृति, वह तो पूरी तरह से अंहकार का ही स्वरूप है । आत्मा को आत्मारूप से नहीं देखते, प्रकृतिरूप ही देखते हैं, इसीलिए वह ठेठ आत्मा तक पहुँचता है। प्रकृति की उत्पत्ति किस तरह हुई ? साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स के आधार पर अहंकार खड़ा हो गया । फिर वह 'स्पेस' में आता है। इंसान का चेहरा, डिज़ाइन वगैरह सब 'स्पेस' के आधार पर ही बनता है। दो चीज़ों का 'स्पेस' कभी भी एक नहीं हो सकता। वह इसलिए अलग-अलग ही होता है, एक एविडेन्स के बदलने से सबकुछ बदल जाता है। स्पेस अलग है इसीलिए संसार की सभी चीज़ों में स्वाद, रूप, गंध वगैरह सबकुछ मिलता है। महात्मा गहराई में उतरकर खुद की प्रकृति को देखें तो उसका पता चलता है और हल्की हो जाती है । अहंकार भी हल्का हो जाता है, सभी का गाढ़ापन चला जाता है ! इसके लिए खुद को सिर्फ निश्चय करना होगा । जिन्हें देह का मालिकीपन छूट गया है, ऐसे ज्ञानी की शारीरिक तकलीफें आसानी से रिपेयर हो जाती है । मालिकी रहित ज्ञानी को ऑपरेशन नहीं करवाना पड़ता । I 223
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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