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________________ [१.८] प्रकृति के ज्ञाता-दृष्टा १०७ प्रश्नकर्ता : कहाँ-कहाँ असर होता है, क्या होता है वह पता चलता दादाश्री : तुम्हारे उठने के बाद प्रकृति क्या करेगी जानते हो तुम? वहाँ तुम्हारी प्रकृति क्या कर रही थी वह तुम जानते हो? प्रकृति क्या करेगी, इसके बाद क्या करेगी, इसके बाद क्या करेगी, वह सबकुछ जानता है अंदर। अरे, मेरी प्रकृति नहीं, तुम्हारी प्रकृति क्या करेगी वह भी मैं जानता हूँ। प्रकृति को मैं जानता हूँ। तुम्हारे उठने के बाद टाइम टू टाइम सब करती है। टाइम को तो लक्ष (जागृति) में रखने जैसा है ही नहीं। क्या हो रहा है, उसे देखते रहना है। जो प्रकृति में तन्मयाकार नहीं, वह संयमी अब क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं होते, क्योंकि वे आत्मा के गुण हैं ही नहीं। अतः अपने सभी महात्मा संयमी कहे जाएँगे। संयमी अर्थात् क्या कि यह प्रकृति जो कर रही है, खुद का उसके विरुद्ध अभिप्राय खड़ा हो जाए, वह संयमी। प्रकृति गुस्सा करे तो उसे खुद को अच्छा नहीं लगता। इस प्रकार अभिप्राय अलग हो जाए, वह संयमी है, 'ऐसा नहीं होना चाहिए, आड़ाई नहीं होनी चाहिए।' प्रकृति तो अपना काम करती ही रहेगी। अगर असंयमी है तो प्रकृति में एकाकार होकर काम करता है और संयमी है तो वह प्रकृति को अलग रखता है, अलग ही रखा करता है। प्रकृति में तन्मयाकार हो जाए, वह भी अलग है और प्रकृति जो करती है, करती रहती है, उसके सामने खुद का अलग अभिप्राय रखे, वह संयमी है। फिर वह चाहे कैसी भी प्रकृति हो। जो प्रकृति में तन्मयाकार नहीं होता, वह संयमी है। प्रश्नकर्ता : प्रकृति जैसी भी हो, उसके लिए उसके विरुद्ध अभिप्राय रखने की ज़रूरत है या उसके ज्ञाता-दृष्टा रहने की ज़रूरत है? दादाश्री : ज्ञाता-दृष्टा रहने की ज़रूरत है। ज्ञाता-दृष्टा अर्थात् वह तो सब से अंतिम कहलाता है, हाई लेवल कहलाता है। उतना हाई लेवल आने में देर लगेगी। जबकि प्रकृति से अलग अभिप्राय का मतलब क्या है कि
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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