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________________ [१.७] प्रकृति को ऐसे करो साफ... १०१ प्रश्नकर्ता : प्रकृति सहज हो जानी चाहिए या नहीं? दादाश्री : वह तो, अगर खुद इस ज्ञान में रहे तो सहज हो ही जाएगी। प्रकृति का निकाल होता ही रहता है, अपने आप निकाल हो जाएगा और नई प्रकृति मेरी हाज़िरी में भरी जा रही है और किसी की अगर ज़रा सख्त होगी तो एकाध जन्म ज़्यादा होगा। एक-दो जन्मों में तो सभी कुछ चला जाएगा। यह सारा मल्टिप्लिकेशनवाला है। प्रश्नकर्ता : आपकी दृष्टि से तो यह सब शुद्ध ही भरा जा रहा है या नहीं? हमारी दृष्टि तो बदल गई, लेकिन जो नई प्रकृति बननी है, वह ठीक और सीधी बनेगी या नहीं? दादाश्री : अब शंका रखने का कोई कारण नहीं है न! आप अगर चंदूभाई बन जाओ तो हम समझें की शंका रखनी है। वह तो आपकी श्रद्धा में है ही नहीं न? दखलंदाजी से असहजता प्रश्नकर्ता : ज्ञान होने के बाद समझ में आता है लेकिन प्रकृति का नाश थोड़े ही हो जाता है? दादाश्री : नहीं, प्रकृति काम करती ही रहती है। प्रकृति जुदा रहती है ज्ञानी में, ज्ञानी में हंड्रेड परसेन्ट (१००%) जुदा रहती है। वे ज्ञानी क्यों कहलाते हैं? क्योंकि सहज स्वरूप देह और सहज स्वरूप आत्मा, दोनों सहज स्वरूप। दखलंदाजी नहीं करते। दखलंदाजी करने से असहजता रहती है। _ 'अभी जितनी दखलंदाजी होती है, उतनी असहजता बंद करनी पड़ेगी,' आप यह जानते भी हो। असहज हो जाते हो, वह भी जानते हो। असहजता बंद करनी है, ऐसा भी जानते हो। किस तरह बंद होगी, वह भी जानते हो, सभी कुछ जानते हो आप।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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