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________________ [१.७] प्रकृति को ऐसे करो साफ... दादाश्री : हाँ, लेकिन किसी को गालियाँ दे और भगवान बन जाए, ऐसा नहीं हो सकता न! प्रश्नकर्ता : इसमें अनात्मा पुद्गल, और पुद्गल ज्ञानी है, ऐसी बात आई इसलिए मैंने पूछा। दादाश्री : वह रिलेटिव आत्मा है न, रिलेटिव आत्मा भगवान जैसा दिखेगा, लोगों को विश्वास हो जाएगा कि ये भगवान हैं, तब मुक्त हुआ जा सकेगा। रिलेटिव आत्मा गालियाँ दे रहा हो और मुक्त हुआ जा सके, क्या ऐसा हो सकता है? प्रश्नकर्ता : मतलब प्रकृति ही न, या पुद्गल? दादाश्री : प्रकृति । आत्मा के अलावा बाकी का सभी कुछ प्रकृति है और प्रकृति ही पुद्गल है। प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाने से पहले क्या हम सब की प्रकृति उस स्टेज में आनी ही चाहिए, नियमानुसार? दादाश्री : हाँ। तभी तो लोग कहेंगे न कि 'सर्वज्ञ हैं,' बाहर की प्रकृति ऐसी ही हो जाएगी। प्रश्नकर्ता : आप जिन्हें ज्ञान देते हैं, वे लोग अलग हैं। जिन्हें अन्य किसी को ज्ञान देने के झंझट में नहीं पड़ना है और सीधे मोक्ष में जाना है, क्या वे लोग भी प्रकृति को भगवान के लेवल में लाने के बाद ही जा पाएँगे? दादाश्री : सभी को। इसका तरीका तो एक ही है न! दो तरीके नहीं हैं। मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन तरीका एक ही है। प्रश्नकर्ता : अब उस चीज़ की हमें इस जन्म में अंतर अनुभूति होगी या नहीं? दादाश्री : इस जन्म की बात क्यों कर रहे हो? वह तो एक-दो जन्मों में सबकुछ अपने आप हो जाएगा। जहाँ दृष्टि बदल गई वहाँ देर ही नहीं लगेगी न।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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