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________________ [१.७] प्रकृति को ऐसे करो साफ... दादाश्री : वह स्वभाव अलग है। परमात्मा स्वभाव में आ जा, ऐसा कहते हैं। यह तो तू दूसरी दशा में है, उल्टी दशा में है, संसारी दशा में है, प्राकृत दशा में है। तू तेरे स्वभाव में आ जा। खुद की परमात्मा दशा में आ जा। "तू 'परमात्मा' है", उसी दशा में आ जा। ऐसा अधिकार भगवान के या किसी और के पास नहीं है कि जो इन सब का लाइसेन्स ले ले। जो खुद के स्वभाव में आ जाता है वह परमात्मा बन जाता है! प्रश्नकर्ता : तू तेरे स्वभाव में आ जा अर्थात् राग-द्वेष से रहित हो जा, कर्तापन में से निकल जा तो यह हो सकता है। दादाश्री : ऐसा है न, यह जो शुद्धात्मा है वही आप हो और वही आपका स्वरूप है। वहाँ से आप अलग हो गए हो तो अब उन्हें देख देखकर आप उस रूप हो जाओ। वे अक्रिय हैं, ऐसे हैं, ऐसे हैं! और ऐसा समझ समझकर आप उस रूप हो जाओ। यह तो व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गया है और उसमें अपनी मान्यता खड़ी हो गई है इसलिए हमें यह देखकर उस रूप होना है। प्रकृति बताए अंत में भगवत् गुण हर एक व्यक्ति खुद का स्वभाव बताए बगैर रहता ही नहीं। जब तक आत्म स्वरूप नहीं हो जाता, तब तक आत्म स्वभाव नहीं दिखाई देता। पुद्गल स्वभाव ही दिखाई देता है। यह पुद्गल स्वभाव खत्म हो जाए और आत्म स्वभाव जैसा हो जाए, उसकी नकल करे वैसा, डिट्टो वैसा ही हो जाए तब पूर्णाहुति कहलाती है। इस तरफ आत्मा भी दिखाई देता है और उस तरफ यह भी आत्मा जैसा ही दिखता है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् मूल आत्मा दिखाई देता है और खुद मूल आत्मा जैसा हो जाता है। दादाश्री : हाँ, वे आग्रह तो मैंने छुड़वा दिए हैं आप से। इस सब से बड़ी पकड़ की वजह से ऐसे नहीं हो पा रहे थे। हाँ पकड़ नहीं होनी चाहिए किसी भी तरह की।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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