SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) सेवा करनी है, तो फिर कोई भी संतपुरुष आएँ तो आप सेवा करते हो। अतः प्रकृति बदलती है यानी उस अनुसार तय किया हुआ ही होता है। ऐसे एक-एक पोइन्ट टु पोइन्ट नक्की नहीं किया है कि ऐसा ही होना चाहिए। वह तो, जिसने पिछले जन्म में ऐसा भाव किया हो कि ज्ञान के अनुसार ही प्रकृति रखनी है, तो उसे कोई ऐसा ज्ञान बताए तो उस अनुसार प्रकृति बदल जाती है। जिसने ऐसा भाव किया हुआ हो, उसकी बदल जाती है। बदले प्रकृति ज्ञान से प्रश्नकर्ता : इंसान की प्रकृति कब बदलती है? दादाश्री : मरने पर भी नहीं बदलती। प्रकृति कभी भी नहीं बदलती। जितना ज्ञान का प्रमाण उत्पन्न होता है, जितनी समझ उत्पन्न होती है, उतनी ही प्रकृति बदलती जाती है। प्रकृति ज्ञान के अनुसार बदलती है लेकिन फिर भी वह रहती है प्रकृति की प्रकृति ही। प्रकृति से बाहर नहीं निकल सकता इंसान। इस जन्म की प्रकृति बदल नहीं सकती बिल्कुल भी। उसके अंदर जितना ज्ञान उत्पन्न हुआ है न, उस ज्ञान के आधार पर अगले जन्म में बदलती है वापस। वापस उसमें जितना ज्ञान उत्पन्न हुआ, वह उसके बादवाले जन्म में बदलती है। ऐसे करते-करते स्टेप चढ़ता जाता है लेकिन प्रकृति से बाहर नहीं निकल सकता। साधु-सन्यासी, संत-वंत वगैरह सभी सात्विक प्रकृति में होते हैं। प्रकृति से बाहर नहीं निकल सकते और जो प्रकृति से बाहर निकले हैं वे या तो ज्ञानीपुरुष या फिर भगवान कहलाते हैं, बस! प्रश्नकर्ता : ज्ञानीपुरुष प्रकृति बदल सकते हैं? दादाश्री : प्रकृति नहीं बदली जा सकती, ज्ञान बदला जा सकता है। मकान बदला जा सकता है, घर बदला जा सकता है लेकिन प्रकृति नहीं बदली जा सकती। आप प्रकृति के घर में रह रहे थे, वहाँ से आपको आपके खुद के घर में बिठा दिया। प्रकृति तो अपना काम करती ही रहेगी लेकिन हमारे साथ बैठाने से प्रकृति एकदम बदल जाती है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy