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________________ [१.६] क्या प्रकृति पर प्रभुत्व प्राप्त किया जा सकता है? व्यसनी प्रकृति के सामने....... प्रश्नकर्ता : हम कहते हैं कि 'प्रकृति का एक भी अंश मुझ में नहीं ` और मेरा एक भी अंश प्रकृति में नहीं हैं, ' तो फिर प्रकृति बदलती क्यों नहीं है ज्ञान लेने के बाद ? ६५ दादाश्री : बदलेगी कैसे? जो प्रकृति लेकर आया है वह तो रहेगी ही न! इस ज्ञान से तो मूलत: कॉज़ेज़वाली प्रकृति बदलती है और इफेक्टिव (प्रकृति) रह जाती है। ऐसी कोई उलझन खड़ी नहीं करती। जैसी फिल्म तैयार हो चुकी है, एक्ज़ेक्ट उसी रूप में निकलती है। सिर्फ उसमें से जो कॉज़ेज़ भाग है वह हल्का पड़ जाता है। यानी कि कुदरत की तो बहुत सुदंर व्यवस्था है ! प्रश्नकर्ता : चाहे कैसे भी संयोग आएँ लेकिन क्या प्रकृति कभी भी नहीं बदलती? दादाश्री : जो कभी भी नहीं बदले, उसी को प्रकृति कहते हैं। वह बदलती कब है कि जब ज्ञानीपुरुष पापों को भस्मीभूत कर देते हैं, तब उसका कुछ भाग कम हो जाता है । अत: इस ज्ञान के बाद आपकी प्रकृति बदली हुई कही जाएगी, वर्ना प्रकृति बदलती नहीं है । इसीलिए लोग कहते हैं कि दादा लोगों की प्रकृति बदल देते हैं । कुछ तो खूब शराब पीनेवाले, मांसाहार करनेवाले लोग होते हैं लेकिन दूसरे ही दिन से सब बंद ! प्रश्नकर्ता : किसी को अगर शराब और मांस छोड़ने हों तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : शराब छूटना ज़रूर महत्वपूर्ण है और मांस नहीं खाए तो वह उत्तम है क्योंकि ये तो जोखिमवाली चीजें हैं लेकिन जब मैं समझाता हूँ तब पता चलता है कि यह जोखिम है । तब फिर छोड़ देता है । वह तो, आपकी प्रकृति में तो नहीं है इसलिए खा नहीं सकते। बल्कि हमें तो ऊपर से इतना कहना है कि ‘मैं नहीं खाता हूँ' बस इतना ही है। अतः ‘मैं नहीं खाता हूँ' शब्द कहने में हर्ज नहीं है लेकिन उसके पीछे ऐसा नहीं होना चाहिए कि 'मैं इनसे ज़्यादा समझदार हूँ'। ये भाई पहले ऐसा समझते थे कि 'मैं इनसे कुछ ज़रा ज़्यादा समझदार हूँ।' अब निकल गई वह समझदारी ? !
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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