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________________ ४० आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) आपकी, हर प्रकार से। अगर उसमें आप रहोगे न, तो कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकेगा। बाघ-सिंह, कुछ भी नहीं। बाघ को जितना समय आप शुद्धात्मा की तरह देखोगे, उतने समय तक वह अपना पाशवी धर्म, पशुयोनि का जो धर्म है उसे भूल जाएगा। वह अपना धर्म भूल गया तो हो चुका! कुछ भी नहीं करेगा। प्रश्नकर्ता : तो सामनेवाले में शुद्धात्मा देखने से उसमें कोई परिवर्तन आता होगा? दादाश्री : ऑफ कोर्स, इसीलिए मैं कहता हूँ कि घर के लोगों को शुद्धात्मा के रूप में देखो। कभी देखा ही नहीं न! आप घर में घुसते ही बड़े बेटे को देखते हो तो यों आपको दृष्टि में कुछ भी नहीं होता। दृष्टि में कैसे हो, कैसे नहीं, सब करते हो लेकिन अंदर कहते हो 'साला नालायक है' ऐसा देखते हो तो उसका असर होता है। यदि शुद्धात्मा देखोगे तो उसका भी असर होता है। निरा असरवाला है यह जगत्। यह इतना अधिक इफेक्टिव है कि पूछो मत! ये विधियाँ करते हैं, तब हम ऐसा ही करते हैं। असर रखते हैं। विटामिन रखते हैं। इसलिए इतनी शक्ति उत्पन्न हुई, वर्ना शक्ति कैसे आ पाती? मैं अनंत जन्मों की कमाई लेकर आया हूँ और आप यों ही रास्ते चलते आ गए। प्रश्नकर्ता : आपने कहा है कि हम शुद्धात्मा को शुद्धात्मा की तरह देखते हैं। अंदर यह शुद्धात्मा तो निर्दोष है ही.... दादाश्री : वे तो भगवान ही हैं। प्रश्नकर्ता : लेकिन हमें उसकी प्रकृति भी निर्दोष दिखाई देती है। दादाश्री : हाँ, वह प्रकृति निर्दोष दिखाई देनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : अंत में वह प्रकृति भी निर्दोष दिखाई देगी तो दोनों एक जैसे हो जाते हैं। दादाश्री : हाँ और अपना मार्ग तो यहाँ तक कहता है कि 'आप
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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