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________________ [१.४] प्रकृति को निर्दोष देखो प्रश्नकर्ता : क्योंकि ऐसा कोई हेन्डल नहीं मारा है या ऐसा कुछ किया नहीं है फिर भी अंदर से दिखाता है कि यह भूल हो गई, गई । भूल हो ३९ दादाश्री : आत्मा अलग है। ऐसा प्रमाणित हो गया न! अब जुदा हो गया है, उसी का प्रमाण है न यह! शुद्धात्मा देखने से बाघ भी अहिंसक प्रश्नकर्ता : खुद की प्रकृति को सामनेवाले की प्रकृति के साथ एडजस्ट करना उसके बजाय अब यदि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और सामनेवाले को यदि शुद्धात्मा देखूँ तो क्या प्रकृति अपने आप ही एडजस्ट हो जाएगी? दादाश्री : हो ही जाएगी। परेशान किया जाए तो प्रकृति विरोध करेगी, वर्ना इतने अच्छे - सहज भाव में आ जाती है। खुद असहज हुआ है न, इसीलिए प्रकृति विरोध करती है। प्रश्नकर्ता : लेकिन जिसने ज्ञान लिया है उसकी प्रकृति सहज हो जाती है, लेकिन अगर सामनेवाले ने नहीं लिया हो तो उसकी थोड़े ही सहज हो जाती है? दादाश्री : लेकिन ज्ञानवाला दूसरों की प्रकृति के साथ आसानी से काम कर सकता है। अगर वह दूसरा बीच में दखलंदाज़ी न करे तो। प्रश्नकर्ता : दो लोग आमने-सामने हों, एक ने दादा का ज्ञान लिया है अतः वह इस प्रकार ज्ञान में रहकर खुद की प्रकृति सहज करता जाता है, पाँच आज्ञा का पालन करके । लेकिन सामने जो व्यक्ति है, जिसने दादा का ज्ञान नहीं लिया है, तो उसकी प्रकृति किस प्रकार से सहज होगी? दादाश्री : नहीं, उससे कोई लेना-देना नहीं है । प्रश्नकर्ता : अब अगर उसकी प्रकृति सहज नहीं होगी तो क्या हमें कोई परेशानी नहीं होगी? दादाश्री : हमारे लिए तो ये पाँच आज्ञा हैं न, ये सेफसाइड है
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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