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________________ आप्तवाणी-८ ५५ इस चिड़िया को शीशे में कुछ करना पड़ता है? शीशे का संयोग मिला कि अंदर दूसरी चिड़िया आ जाती है। आँखों और चोंच सहित, और बाहरवाली चिड़िया जैसा करती है, वैसा ही अंदरवाली चिड़िया करती है। इसी तरह आत्मा भी संयोगों से घिरा हुआ है। जैसे सूर्यनारायण के संयोग से परछाई उत्पन्न होती है, वैसे ही यह तो संयोगों के कारण 'खुद का स्वरूप' उल्टा दिखता है । बाकी, इन सब संयोगों से कोई मुक्त हो चुके हों, वे ही हमें मुक्त करवा सकते हैं, और कोई मुक्त नहीं करवा सकता । जो खुद ही बँधा हुआ है, वह किस तरह से मुक्त करेगा ? आत्मा कहाँ से आया? तो 'रिलेटिव' में मुझे कहना पड़ा कि आत्मा समसरण मार्ग में है। मार्ग में जाते हुए ये तरह-तरह के संयोग मिलते जाते हैं, उन संयोगों के दबाव से ज्ञान विभाविक हो गया । अन्य कुछ आत्मा ने किया ही नहीं। यह तो ज्ञान विभाविक हुआ न, इसीलिए जैसा भाव हुआ, वैसा ही यह देह निर्मित हो गया । इसमें आत्मा को कुछ भी नहीं करना पड़ा। फिर जैसी कल्पना करता है वैसा बन जाता है, कल्पना करे वैसा बन जाता है और फिर उलझता रहता है, फिर नियम में आ जाता है, ‘व्यवस्थित' के नियम में आ जाता है। फिर 'बेटरी' में से 'बेटरी', 'बेटरी' में से 'बेटरी' ऐसे साइकल (चक्र) चलती रहती है। जब 'ज्ञानीपुरुष' 'बेटरी' छुड़वा देते हैं, तब छुटकारा होता है । ये मन-वचनकाया की तीन बेटरियाँ हटा देते हैं ताकि ऐसी 'बेटरी' चार्ज नहीं हो और पुरानी 'बेटरी' डिस्चार्ज होती रहें ! I इसीलिए ज्ञानियों ने कहा है, अनादि अनंत यह तो आत्मा को ऐसे संयोग मिले हैं। जैसे अभी हम यहाँ पर बैठे हैं, और बाहर निकले तो एकदम कोहरा हो तो आप और मैं आमनेसामने होंगे, फिर भी नहीं दिखेंगे । ऐसा होता है या नहीं होता? प्रश्नकर्ता : हाँ, होता है । दादाश्री : हाँ, वह जो कोहरा छा जाता है, उससे दिखना बंद हो जाता है। ऐसे ही इस आत्मा पर संयोगरूपी कोहरा छाया हुआ है, यानी
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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