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________________ ३८ आप्तवाणी-८ यहाँ पर तो एक अवतार की गारन्टी प्रश्नकर्ता : आत्मस्वरूप का दर्शन हो जाने के बाद जीव सतत आत्मस्वरूप में रहता है, तो ऐसी स्थिति हो जाने के बाद जीव के पुनर्जन्म होने की संभावना है क्या? दादाश्री : नहीं। फिर भी एक अवतार बाकी बचता है। क्योंकि यह 'हमारी' आज्ञापूर्वक है। आज्ञा पालना, उसे धर्मध्यान कहते हैं। उसका फल भोगने के लिए एक जन्म रहना पड़ता है, यों तो यहाँ से ही मोक्ष हो चुका है, ऐसा लगता है। यहाँ पर ही मोक्ष नहीं हो जाए तो किस काम का? वर्ना इस कलियुग में तो सभी छल करते हैं। जान-पहचानवाले को सब्जी लेने भेजा हो तो भी अंदर से 'कमीशन' ले लेता है, कलियुग में क्या भरोसा? अर्थात् गारन्टेड होना चाहिए। यह गारन्टेड हम देते हैं। फिर जितनी हमारी आज्ञा पालेगा, उतना उसे लाभ होगा। बाकी खुद के स्वरूप का भान तो सारे दिन रहा ही करता है, निरंतर भान रहता है! ऑफिस में काम कर रहे हों, तो भी भान रहता है!! ज़रा गाढ (जटिल) काम हो तो वह काम पूरा हुआ कि तुरन्त ही वापस भान में आ जाता है। क्रिया यदि गाढ़ हो तो, जैसे आधे इंच के पाइप से पानी गिर रहा हो तो हम ऐसे नल के नीचे हाथ रखें तो हाथ खिसक नहीं जाता और डेढ़ इंच के पाइप में से फोर्स से पानी आ रहा हो तो हाथ खिसक जाता है। इसी प्रकार यदि बहुत भारी गाढ़ कर्म हों तो वे विचलित कर देते हैं। उसमें भी हमें हर्ज नहीं है। क्योंकि हमें एक जन्म में हिसाब साफ करना है न? हिसाब साफ किए बिना मोक्ष में जाया नहीं जा सकेगा न! प्रश्नकर्ता : हिसाब साफ नहीं करें तो पुनर्जन्म लेना पड़ेगा? दादाश्री : हाँ, इसलिए ही पुनर्जन्म मिलता है। यानी हिसाब बिल्कुल साफ हो जाना चाहिए, तो हल आएगा। भ्रांति ही लाती है जन्म-मरण प्रश्नकर्ता : तो ऐसा ही हुआ न कि जब दूसरा जन्म होना होता है, तब वही का वही आत्मा वहाँ पर जाता है?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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