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________________ ३१८ आप्तवाणी-८ उससे कहता ज़रूर है कि तू लेकर आना, लेकिन जब वह पैसे हाथ में लेता है, उस घड़ी काँप जाता है, स्पर्श नहीं होना देता। यानी उससे एक भी पैसा नहीं लिया जाता। लेकिन अगले जन्म के लिए 'रिश्वत लेनी है', उसमें वापस ऐसा नया बीज पड़ जाता है। इस जन्म में कुछ भी लिया नहीं और अगले जन्म के लिए बीज डाल दिए। इतनी बड़ी दुनिया में मनुष्य कैसे-कैसे बीज नहीं डालता होगा? और किस-किस तरह से फँसता होगा, उसका क्या पता चले? आपको समझ में आया न? सिद्धांत है न? पूरी तरह से सैद्धांतिक है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : अपने यहाँ पर पाँच वर्ष की योजना बनाते हैं, उसमें पहले वर्ष में इस तरह से किस-किस जगह पर बाँध बनवाने हैं, इस जगह पर ऐसा करना है, इस जगह पर ऐसा करना है', ऐसा सब तय करते हैं। फिर वह सब कागज़ पर लिखते हैं और ड्रॉइंग वगैरह सब कागज़ पर तैयार हो जाता है। वह जब सेंक्शन हो जाता है, तब वह योजना रूपक में लाना शुरू करते हैं, तब उसका जन्म हो गया ऐसा कहलाता है, तब से ही उस योजना को आकार मिलने लगता है। उसी तरह से पहले यह योजना बनती हैं। एक जन्म में वह योजना बनती है, दूसरे जन्म में आकार लेती है और आकार लेते समय फिर से अंदर नई योजना बनती जाती है कि इस अनुसार डालना चाहिए, ऐसा होना चाहिए, ऐसा चक्कर चलता रहता है। अतः यह बहुत सैद्धांतिक चीज़ है। 'प्रत्यक्ष' ज्ञानी ही, 'हक़ीक़त' प्रकाशित करें अब ऐसी बात पुस्तकों में तो लिखी हुई होती नहीं, तब फिर किस तरह से मनुष्य वापस लौटे? पुस्तक में तो कैसा लिखा हुआ होता है, कि कढ़ी में मिर्ची, नमक, हल्दी, गुड़ वगैरह सब डालना। लेकिन कौन-कौन-सी चीज़ और किस तरह से कितने अनुपात में लेना, ऐसा तो नहीं होता न? इसलिए यह वस्तु उसे भीतर समझ में नहीं आती न! इस प्रतिष्ठित आत्मा को ही पूरी दुनिया आत्मा मानकर बैठी है और उसे
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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