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________________ ३०८ आप्तवाणी-८ प्रश्नकर्ता : तो फिर आत्मा अशुद्ध हुआ ही कैसे? दादाश्री : वह तो लोगों ने 'शांति, शांति' कहा न! ये लोग अज्ञानता का प्रदान करते हैं न, उससे दर्शन बदल जाता है। पूरा दर्शन पलट जाता है, उसका अमल (प्रभाव) है। जैसे कि अभी एक सेठ हैं, वे पूरे दिन अच्छी तरह बाते करते हैं,। न्याय-नीति की कैसी सब बातें करते हैं। यों तो विनयवाले, लेकिन अगर आधा सेर दारू पी जाएँ तो क्या होगा? प्रश्नकर्ता : फिर पागलपन छा जाएगा। दादाश्री : तो क्या सेठ बिगड़ गए? नहीं, यह तो दारू का अमल है। वैसे ही यह अज्ञान का अमल हो गया है। प्रश्नकर्ता : हम यदि शुद्ध थे किसी समय, तो मलिन हुए ही किस तरह? दादाश्री : वे सेठ अभी अच्छी तरह से बैठे थे, उसके बाद आधा सेर पी ली तो मलिन किस तरह से हो गए? वही के वही सेठ फिर कुछ भी बोलने लगें। 'मैं सयाजीराव महाराज हूँ' ऐसा-वैसा बोलने लगें, तभी से हम नहीं समझ जाएँगे कि सेठ को चढ़ गई है? प्रश्नकर्ता : लेकिन पहले तो शुद्ध था न? तो उसमें इतनी भी शक्ति नहीं थी, तो फिर से वह अशुद्ध कैसे हो गया? दादाश्री : शुद्ध ही है, अभी भी शुद्ध ही है, कुछ भी हुआ ही नहीं है। यह तो अमल है। अमल खत्म हो जाए तो कुछ हुआ ही नहीं है। तो कल चंदूभाई थे और दूसरे दिन अमल उतर गया यानी शुद्ध ही हो गए। दूसरे दिन एक ही घंटे में शुद्ध हो गए, आत्मा अगर अशुद्ध हो जाता तो एक घंटे में शुद्ध किस तरह से हो पाएगा? यह तो जिस तरह सेठ दारू पीकर बोलता है न, वैसे ही यह नशा चढ़ा है, अमल है। इसलिए 'इसे' 'मैं चंदूभाई, मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा नशा चढ़ गया है, 'रोंग बिलीफ़' बैठ गई है!
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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