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________________ आप्तवाणी-८ पड़ता है कि मेरा चेहरा बता? कुछ कहना नहीं पड़ता न? ऐसा क्यों? और फिर भी वह 'एक्ज़ेक्ट' चेहरा दिखाता है न? बिना किसी कमी या ख़राबीवाला दिखाता है न? अब शीशे का यह प्रयोग हर रोज़ का हो गया है, इसलिए इसकी क़ीमत महसूस नहीं होती । बाकी, इसकी क़ीमत बहुत ही समझने जैसी है । I ३०७ अभी घर में आपकी परछाई दिखती है ? नहीं । और बाहर रास्ते पर निकलोगे तो परछाई पड़ेगी । उसके बाद फिर आप अगर ऐसे घूमोगे तो भी परछाई पड़ेगी और आप वैसे घूमोगे तो भी परछाई पड़ेगी। उस परछाई को बनाने में कितना समय लगता हैं? अत: 'ऑन्ली साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' है यह जगत् । कुछ भी हुआ नहीं है, कुछ भी बना नहीं है । जगत् तो ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' ही है। इसमें भगवान को कुछ भी नहीं करना पड़ा। यह प्रकृति उत्पन्न होती है, वह भी 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' से है और प्रकृति इफेक्टिव है। ये मन-वचनकाया इफेक्टिव हैं, और उस इफेक्टिव का 'आत्मा' पर असर होता है। क्योंकि 'खुद' की ' रोंग बिलीफ़' बैठी हुई है। 'ज्ञानीपुरुष' उस 'रोंग बिलीफ़' को बदल देते हैं, फिर ‘उस' पर यह सब असर नहीं होता । संसारकाल में, अमल अज्ञानता का ही प्रश्नकर्ता : तो चैतन्य अगर शुद्ध हो जाए, तो वापस उसे आना पड़ेगा? दादाश्री : आना ही नहीं पड़ेगा न ! एक बार शुद्धता में आ गया कि अहंकार गया, बाद में फिर आना ही नहीं पड़ेगा। जब तक अहंकार है, तब तक बीज डालता है कि 'मैंने किया' और उसमें से वापस अहंकार उत्पन्न होता है। जब तक 'मैंने किया' ऐसा मानता है, तब तक वापस अहंकार उत्पन्न होता है । प्रश्नकर्ता : तो आत्मा पहले से ही अशुद्ध ही होना चाहिए? दादाश्री : नहीं, आत्मा शुद्ध ही है ।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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