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________________ आप्तवाणी-८ २८५ और आत्मज्ञान, वह कारण-केवळज्ञान कहलाता है। आत्मज्ञान यों ही नहीं हो जाता किसीको भी! अभी आत्मज्ञान किसीको भी नहीं है। अगर आत्माज्ञान हो तो ऐसी वाणी भी नहीं होगी, ऐसा वर्तन भी नहीं होगा, कोई आग्रह ही नहीं होगा न! आत्मज्ञानी में आग्रह नहीं होता, वे निराग्रही होते हैं। और जहाँ पर आत्मज्ञान है, वहाँ पर अहंकार नहीं होता, आग्रह नहीं होता। बाकी जहाँ पर अहंकार है, आग्रह है, वहाँ पर कुछ भी जानते नहीं। यह बात सही है कि वे शास्त्रज्ञान जानते हैं, लेकिन उनमें अहंकार है। जिन शास्त्रों से अंहकार नहीं गया, तो उन शास्त्रों का कुछ भी ज्ञान अपने काम नहीं आया। प्रश्नकर्ता : कुछ दार्शनिकों ने कहा है कि आत्मा शुद्ध-बुद्ध ही है। दादाश्री : हाँ, शुद्ध-बुद्ध कहते हैं। अब आत्मा यदि शुद्ध और बुद्ध ही है तो मंदिर में किसलिए जाते हो? और ये शास्त्र क्यों पढ़ते हो? यह समझने जैसा है न? यानी वहाँ पर सापेक्ष बात है। किसी खास अपेक्षा से शुद्ध है। हाँ, जब तक खुद चंदूभाई है और फिर अज्ञानी, तब तक आत्मा शुद्ध नहीं कहा जा सकता। हाँ, 'तेरा' अज्ञान जाए तो 'आत्मा' शुद्ध ही है, अंदर तो वह शुद्ध ही है, कभी भी अशुद्ध हुआ ही नहीं, लेकिन अगर तू उसे यों ही 'शुद्ध है, बुद्ध है' गाता रहेगा तो कुछ भी होगा नहीं। इस शुद्ध का तुझे अनुभव होना चाहिए। यानी कहना हो तो क्या कहा जा सकता है कि 'देह की अपेक्षा से मैं अशुद्ध हूँ और खुद की अपेक्षा से मैं शुद्ध हूँ', क्योंकि खुद निरपेक्ष है। लेकिन बात ऐसी सापेक्ष होनी चाहिए। सिर्फ निरपेक्ष बात कि 'आत्मा शुद्ध ही है' ऐसा नहीं बोल सकते! इस तरह 'आत्मा शुद्ध ही है' कहेंगे, तब तो फिर आत्मा को ढूंढने का रहा ही नहीं न! 'क्या है' जाना, लेकिन... गुरु क्या कहते हैं कि 'तू यह है' और शिष्य गाता रहता है, लेकिन 'तू क्या नहीं है' ऐसा उन्होंने नहीं बताया, दोनों बताना पड़ता है। जब कि सिर्फ 'क्या है' इतना ही बताया। क्या नहीं है' वह नहीं बताया। तब फिर शिष्य क्या नहीं है' में रहता है और शब्द, 'क्या है', उसके निकलते हैं।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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