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________________ वाणी(टेपरिकार्डर), दिमाग़(मशीन का हेड), और खाना, पीना, बोलना, चलना वह सब ‘मिकेनिकल' है। 'मैं पापी हूँ, मैं तपस्वी हूँ, मैं शास्त्रज्ञानी हूँ', जो ऐसा मानते हैं, या फिर देवदर्शन, धर्मध्यान, जप तप आदि ही करते हैं, 'ज्ञानी' ने उसे भी, 'मिकेनिकल आत्मा कर रहा है', ऐसा कह दिया!!! जगत् की मान्यता में जो आत्मा है, जिसे वह स्थिर करने जाता है, वह सचर, ‘मिकेनिकल आत्मा' है और दरअसल आत्मा तो अचल है, ज्ञायक स्वभाव का है। मूल में मान्यता ही भूल से भरी हुई है। सचर विभाग में रहकर अचल आत्मा को ढूँढने से प्राप्ति सचरात्मा की ही होगी न! 'मिकेनिकल आत्मा' जो कि स्वयं चंचल है, क्रियाशील है, जगत् उसे स्थिर करने जाए, तो वह किस तरह से हो पाएगा? अचल के प्रति की दृष्टि ही स्वाभाविक अचलता को प्राप्त करवाती है। 'मिकेनिकल आत्मा' और दरअसल आत्मा स्वभाव से भिन्न हैं उस भिन्नता का भान, उसके प्रति दृष्टि, 'ज्ञानी' के अलावा और कौन समझा सकता है, कौन करवा सकता है? दरअसल आत्मा तो केवळज्ञान स्वरूप है, केवळ प्रकाशक रूपी है, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतशक्ति, अनंत सुखधाम, अनंत गुणों से भरपूर, ऐसा चेतन है वह तो!!! ___ संसार में जिसकी रमणता है, वह वास्तव में मूल आत्मा नहीं है। जब तक राग-द्वेष परिणाम प्रवर्तमान हैं, तब तक शुद्धात्मा पद की प्राप्ति भी नहीं है! चेतन के स्पर्श से मायावी शक्ति की उत्पत्ति हुई, जो भ्रांत चेतन है। निश्चेतन चेतन यानी सभी बाह्य लक्षण चेतन जैसे भासित होते हैं, परन्तु वास्तव में वह चेतन नहीं है। मूल चेतन तो अंदर है और ऊपर निश्चेतन चेतन का पर्दा है, निश्चेतन चेतन को ही 'मिकेनिकल चेतन' कहा है! मिश्रचेतन-ज्ञानी का यह मौलिक शब्द क्या सूचित करता है कि अवस्था में तन्मयाकार होता है तभी से मिश्रचेतन होने लगता है। वह फिर दूसरे जन्म में परिपक्व होकर रूपक में आता है, जब डिस्चार्ज की प्रक्रिया शुरू होती है, तब वह 'मिकेनिकल चेतन' कहलाता है!
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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