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________________ आप्तवाणी-८ २३७ दादाश्री : 'चंदूलाल' तो व्यवहार में पहचानने का साधन है, उसमें हर्ज नहीं है। वह तो मैं भी कहता हूँ। मुझे कोई पूछे कि, 'आपका नाम क्या है?' तो मैं कहता हूँ, 'अंबालाल।' लेकिन 'मैं' अपने आप को 'अंबालाल हूँ' ऐसा कभी भी, स्वप्न में भी नहीं मानता। और आप तो, स्वप्न में तो क्या, लेकिन जागृत अवस्था में भी ऐसा मानते हो कि, 'मैं चंदूलाल हूँ!' अब 'मैं चंदूलाल हूँ', यह 'रोंग बिलीफ़' आपको परेशान करती है। और मैं अपने स्वभान में रहता हूँ, स्व-स्वरूप में रहता हूँ, इसलिए मुझे निरंतर समाधि रहती है। स्व-स्वरूप में आने पर परमात्मापन प्रकट होता रहता है, परमात्मा की शक्ति व्यक्त हो जाती है। अभी तो चंदलाल की शक्तियाँ व्यक्त हुई हैं। मनुष्य में आए हो इसलिए चंदूलाल की शक्तियाँ व्यक्त हुई हैं, लेकिन मनुष्यपन की अधिक शक्तियाँ व्यक्त नहीं हुई हैं। इसलिए सामान्य मनुष्य ही माना जाता है। ऐसे काल में प्रयत्नों से प्राप्ति संभव है? प्रश्नकर्ता : इसके लिए प्रयत्न करना पड़ेगा? दादाश्री : प्रयत्न करना आपसे हो नहीं सकेगा। क्योंकि आप खुद व्यग्र हो चुके हो, इसलिए प्रयत्न नहीं हो सकेगा। वह तो कोई संपूर्ण एकाग्र हो तो मैं बता दूं, लेकिन इस काल में मनुष्य वैसा एकाग्र रह नहीं सकता और इस काल में इतनी भीड़ में, ऐसे भीषण काल में मनुष्य एकाग्र किस तरह से रह सकेगा? इसलिए मैं पहले आपके पाप धो देता हूँ, फिर आपको 'राइट बिलीफ़' बैठा देता हूँ। प्रश्नकर्ता : प्रगति करने के लिए एकाग्रता की ज़रूरत है क्या? दादाश्री : ऐसा है न, एकाग्रतावाली दवाईयाँ हैं, वे 'हेल्पिंग' हैं। इस जगत् में कोई वस्तु गलत है ही नहीं। ये सभी वस्तुएँ 'हेल्पिंग' हैं, लेकिन यदि खुद को इतनी ही तमन्ना हो कि संपूर्ण स्वतंत्र होना है। 'शक्कर मीठी है' उसमें मीठी का मतलब क्या है, उसका ही भान करना है, तो फिर उसे अंतिम बात करने के लिए यहाँ पर आना चाहिए। वर्ना तो ये दूसरे सभी उपाय हैं और वे 'स्टेपिंग' हैं।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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