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________________ आप्तवाणी-८ २३५ मुक्ति मांगे सैद्धांतिक समझ प्रश्नकर्ता : लेकिन किताब में तो ऐसा लिखा है कि मन को आत्मा में लगा, तो उद्धार होगा। दादाश्री : हाँ, लेकिन वह आत्मा को जानने के बाद में लगाया जा सकता है न, यों ही किस तरह से लगाया जा सकेगा? जब तक 'रियलाइज़' नहीं होगा तब तक आत्मा किसे कहोगे? आत्मा जलाने से जलाया जा सके ऐसा नहीं है, और वह पानी से भीगता नहीं है, ऐसा सब लिखा है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तो ऐसी तो घड़ियाँ भी आ गई हैं, वॉटरप्रूफ और फायरप्रूफ! यानी कि मेरा कहना है कि ऐसी तो घड़ियाँ भी आती है न? आत्मा ऐसा नहीं है। आत्मा तो अनंत गुणों का धाम है और वह तो परमात्मा ही है। जब केवळी दशा में आता है, तब वह परमात्मा कहलाता है और जब तक केवळी दशा में नहीं होता और शब्दरूप में होता है, तब तक अंतरात्मा कहलाता है, जब तक शब्द का अवलंबन है, तब तक अंतरात्मा कहलाता है। फिर भी अंतरात्मा और परमात्मा में बहुत फ़र्क नहीं है। जो अंतरात्मा हैं, वे परमात्मा हो रहे हैं और केवळी परमात्मा हो चुके हैं, इतना ही फ़र्क है। प्रश्नकर्ता : कई स्तोत्रों में, स्तुतिओं में ऐसा कहा गया है कि उन स्तुतियों का नित्यपाठ करने से संसार के सभी सुख भोगकर परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। अगर ऐसा हो तो आत्मज्ञान के लिए मेहनत क्यों करें? दादाश्री : ऐसा है न, वे तो रास्ता बताते हैं कि पुण्य बँधा हुआ होगा तो आगे बढ़ोगे, तो कभी न कभी आत्मज्ञान प्राप्त करने का रास्ता मिल जाएगा। लेकिन अगर पाप ही बँधा हुआ होगा, तो उसे यह रास्ता मिलेगा ही नहीं न? इसलिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए ऐसा कहा है। बाकी यह वास्तव में, ‘एक्जेक्ट' कारण नहीं है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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