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________________ आप्तवाणी-८ २३१ दादाश्री : यह समझने की कोशिश कब होगी? 'आप' 'चंदूभाई' हो, तो समझने की कोशिश किस तरह करोगे? और वास्तव में 'आप' चंदूभाई हो ही नहीं। चंदूभाई तो आपका नाम है। 'आप' इस बच्चे के पिता हो, यह भी व्यवहार है और यह सब तो हम क़बूल करते ही हैं न! उसमें नई बात क्या है? यह तो पहचानने का साधन है। आप कौन हो', उसका तो 'ज्ञानीपुरुष' के पास जाकर पता लगाना चाहिए, उसे 'रियलाइज़' करना चाहिए। यह तो पराई चिट्ठी 'खुद' ने ले ली दादाश्री : आपको तो यह विश्वास है ही न, कि 'मैं चंदूभाई हूँ?' प्रश्नकर्ता : नहीं, यह नाम तो लोकभाषा में है, बाकी 'मैं एक आत्मा हूँ' बस, और कुछ नहीं। दादाश्री : हाँ, आत्मा हो लेकिन कोई चंदभाई को गाली दे तो उसकी चिट्ठी आप नहीं लेते हो न? ले लेते हो? तब तो आप चंदूभाई हो। फिर लोक-भाषा नहीं कह सकते। चंदूभाई को गाली दे तो आप चिट्ठी क्यों ले लेते हो? इसलिए आप चंदूभाई बन गए हो। प्रश्नकर्ता : व्यवहार में रहने के लिए तो सब करना पड़ता है न! दादाश्री : नहीं। व्यवहार में रहना है लेकिन चंदूभाई की चिट्ठी आपको नहीं लेनी चाहिए। ऐसा कह सकते हैं कि, 'भाई, यह चंदूभाई की चिट्ठी है। मुझे हर्ज नहीं है। आपको जितनी गालियाँ देनी हो उतनी दो।' लेकिन आप तो चंदूभाई बनकर रहते हो। चंदूभाई के इनाम आपको खाने हैं और फिर कहते हो 'मैं आत्मा हूँ।' इस तरह से कोई आत्मा बन जाए, ऐसा हो सकता है? संसार में असंगता, कृपा से प्राप्त दादाश्री : 'आप आत्मा हो' आपको ऐसा यक़ीन किस तरह से हो गया?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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