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________________ आप्तवाणी-८ २२९ जो विज्ञान है, वह विज्ञान होगा तभी आत्मा प्राप्त हो सकेगा, नहीं तो आत्मा प्राप्त करने के शास्त्र निकले हैं, लेकिन उस ज्ञान से कुछ आत्मा प्राप्त हो सके, ऐसा नहीं है। क्योंकि आत्मा शब्दरूप तो है नहीं कि शास्त्र में उतर सके। वह तो नि:शब्द है, अवक्तव्य है, अवर्णनीय है। बाकी लोगों ने जो कल्पना की है, आत्मा वैसा नहीं है। यह तो मन में मानकर बैठे रहते हैं और पूरी रात और दिन निकाल देते हैं और अंदाज़े से चलते रहते हैं और अनंत जन्मों से भटक रहे हैं, लेकिन अभी तक जन्म तो एक भी कम नहीं हुआ! नहीं मिट सकता खुद से पोतापणुं दादाश्री : क्या नाम है आपका? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : वास्तव में चंदूभाई हो, ऐसा विश्वास है? प्रश्नकर्ता : लोगों ने मेरा नाम रखा है। दादाश्री : तो आप वास्तव में क्या हो? 'माइ नेम इज़ चंदूभाई' बोलते हो न? तो यह 'माइ' कहनेवाला यह कौन है? प्रश्नकर्ता : यही मेरी खोज है। 'मैं कौन हूँ' यही तो खोजना है। दादाश्री : कितने समय से खोज रहे हो यह? प्रश्नकर्ता : दो वर्षों से। दादाश्री : पहले नहीं की थी? क्यों? प्रश्नकर्ता : ज़रूरत नहीं थी और उस तरह की समझ भी नहीं थी। दादाश्री : ओहो! ऐसी समझ ही नहीं थी कि आपको यह ज्ञान जानना है, ठीक है। अतः यह ज्ञान, 'मैं कौन हूँ' इसे जानने की ज़रूरत है। इसे जान ले न तो सारा निबेड़ा आ जाएगा। अब इसमें 'चंदूभाई' 'आपका' नाम है। लेकिन 'आप' कौन हो?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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