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________________ २२८ आप्तवाणी-८ कि जिनका छुटाकारा हो चुका है, ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तो अपना कुछ छुटकारा करवा देंगे, वर्ना तब तक संत पुरुषों के पास बैठ सकें, तो उसके जैसा बड़ा पुण्य भी और कोई नहीं है। बाकी संसार के त्रिविध ताप में से किस तरह से निकल पाएगा? फिर भी वे संत पानी छिड़कते रहते हैं, जिससे ठंडक रहती है। प्रश्नकर्ता : फिर भी किसी भी साधन के सहारे के बिना आगे किस तरह से बढ़ा जा सकता है? कोई साधन तो चाहिए न? दादाश्री : सभी साधन ही बंधन हो चुके हैं। आपको बाँधा किसने है? साधनों ने ही आपको बाँधा है। इन लोगों ने जितने-जितने साधन बनाए हैं न, उन साधनों ने ही इन्हें बाँधा है। प्रश्नकर्ता : तो क्या सोचकर आगे बढ़ें? और उलझन में से निकलें किस तरह? दादाश्री : ऐसा है न, कोई कहेगा, 'ये आकाश पुष्प आपने देखा था?' तो आप क्या कहोगे? प्रश्नकर्ता : ‘वह तो भ्रम है' ऐसा कहूँगा। दादाश्री : तो यह तो आत्मा है, वह किस तरह मिलेगा? वह कोई कल्पित वस्तु नहीं है। ___ यानी कि आत्मा को किस तरह से जानोगे? आत्मा तो खुद ही विज्ञान है। और आप जो सब साधन करते हो, ज्ञान के सब साधन करते हो, वह ज्ञान भी शुष्कज्ञान है। यानी कि उसमें आपको सबकुछ करना पड़ता है, जब कि विज्ञान तो इटसेल्फ क्रियाकारी होता है, खुद ही काम करता रहता है। आपको कुछ भी नहीं करना है, और विज्ञान से आत्मा जाना जा सकता है। अन्य कोई ऐसा साधन नहीं है कि जिससे आत्मा जाना जा सके। यह आपको साधन बताया है। अब यह विज्ञान, यह आप कर लोगे? प्रश्नकर्ता : पता नहीं चला, कौन-सा विज्ञान? दादाश्री : आत्मविज्ञान। आत्मविज्ञान अर्थात् आत्मा प्राप्त करने का
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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