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________________ आप्तवाणी-८ २२३ कोई तत्व है। लेकिन वह आत्मा को नहीं मानता, लेकिन अन्य कुछ है, ऐसा वे मान सकते हैं। उन्हें हम कहें कि पुनर्जन्म है, तो वे स्वीकारेंगे नहीं। अतः सिर्फ आत्मा को जानना है। अपने हिन्दुस्तान के सभी धर्म क्या कहते हैं कि आत्मा को जानो। फॉरिन में आत्मा की बात ही नहीं है। फॉरिन में तो 'मैं ही विलियम हूँ और मैं ही माइसेल्फ' कहेगा। और जब तक वे लोग पुनर्जन्म में नहीं मानते, तब तक आत्मा का भान नहीं हो सकता। जो लोग पुनर्जन्म को मानते हैं उन्हें आत्मा की ख़बर होती है कि भाई, मेरा आत्मा जुदा है और मैं जुदा हूँ। और आत्मा एक ऐसी चीज़ है कि किसीको मिला ही नहीं, सिर्फ केवळज्ञानियों को ही मिला था, ऐसा कहें तो चलेगा। अन्य जो केवळी हो चुके हैं, वे केवळज्ञानियों के दर्शन करने से ही हुए हैं। लेकिन वास्तव में यदि शोध की है, तो वह केवळज्ञानियों ने, तीर्थंकरों ने! आत्मा हाथ आए ऐसी वस्तु नहीं है। इस शरीर में आत्मा किस तरह से मिलेगा? आत्मा ऐसा है कि घरों के आरपार चला जाता है, यहाँ लाख दीवारें हों, उनके भी आरपार चला जाता है, आत्मा ऐसा है। अब इस देह में वह आत्मा किस तरह से मिलेगा ‘उसे'? ज्ञानी बर्ताएँ, आत्मपरिणति में प्रश्नकर्ता : तो सांसारिक मनुष्यों को आत्मा मिलता ही नहीं? दादाश्री : ऐसा कुछ नहीं है। आत्मा ही हो आप। लेकिन आपको' खुद को यह भान नहीं है कि 'मैं' किस प्रकार से 'आत्मा' हूँ, वर्ना वास्तव में तो 'आप' खुद ही 'आत्मा' हो। 'ज्ञानीपुरुष' जो आत्मज्ञान देते हैं, वह किस तरह से देते हैं? यह भ्रांतज्ञान और यह आत्मज्ञान, यह जड़ज्ञान और यह चेतनज्ञान, उन दोनों के बीच में 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' डाल देते हैं। इसलिए फिर वापस से भूल होना संभव नहीं रहता। और आत्मा निरंतर लक्ष्य में रहा करता है, एक क्षण के लिए भी आत्मा की जागृति नहीं जाती।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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