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________________ २१० आप्तवाणी-८ सकते हो न कि यह काँच टूट जाएगा? यह चश्मा टूट जाएगा? इसलिए आप ‘परमानेन्ट' हो। और यह चश्मा, यह टेम्परेरी वस्तु है। ‘परमानेन्ट' वस्तु ही टेम्परेरी को टेम्परेरी समझ सकती है। वर्ना एक टेम्परेरी वस्तु दूसरी टेम्परेरी वस्तु को नहीं समझ सकती। टेम्परेरी, टेम्परेरी को किस तरह से समझ सकेगा? यानी कि यदि वह 'परमानेन्ट' होगा तभी टेम्परेरी को टेम्परेरी समझ सकेगा। दुनिया में अगर 'परमानेन्ट' वस्तु ही नहीं होती न तो फिर टेम्परेरी को टेम्परेरी कहने का अर्थ ही कहाँ रहा? उसे टेम्परेरी क्यों कहना पड़ता है? कोई 'परमानेन्ट' वस्तु है, इसलिए हम टेम्परेरी कहते हैं। वर्ना अगर सभी टेम्परेरी होता तो? यानी आपकी बुद्धि में यह बात पहुँच रही है? प्रश्नकर्ता : हाँ, ‘परमानेन्ट' वस्तु है, इसलिए टेम्परेरी वस्तु भी है। दादाश्री : हाँ, 'परमानेन्ट' वस्तु यहाँ पर है, उसके आधार पर ये दूसरी वस्तुएँ टेम्परेरी कहलाती हैं, उसे समझ में आता है कि 'यह टेम्परेरी है, वह टेम्परेरी है, काँच का प्याला टेम्परेरी है।' ऐसा समझ में आता है न? यह तांबे का लोटा है, वह आपके हाथ में से गिर जाए तो आपको बहुत भय नहीं लगेगा, लेकिन काँच का प्याला गिर जाए तो क्या होगा? प्रश्नकर्ता : प्याला टूट जाने का डर रहेगा। दादाश्री : हाँ, वह काँच का पूरा प्याला फूट जाएगा न और तांबे का प्याला तो बहुत हुआ तो थोड़ा पिचक जाएगा, तो उसे ठीक कर देंगे, तब था वैसे का वैसा बन जाएगा, लेकिन वह सब टेम्परेरी है। कोई पच्चीस वर्ष चलता है, कोई पंद्रह वर्ष चलता है। यह देह है, वह पौने सौ साल तक चलता है। यह सब टेम्परेरी है। आप खुद 'परमानेन्ट' हो। लेकिन अपने आप को 'आप' टेम्परेरी मान बैठे हो। 'मैं चंदूभाई हूँ, मैं देह हूँ, मैं इनका बेटा हूँ', ये सभी भूलें निकालना चाहता हूँ। आपको भूल निकालनी है न? ये लोग सभीको टेम्परेरी कहते हैं न, दूसरों को टेम्परेरी कहनेवाला
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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