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________________ आप्तवाणी-८ २०९ दादाश्री : ‘मानें तो' यह शब्द ऐसा है न, यह रुढ़ीगत शब्द है, यह कुछ ‘एक्ज़ेक्ट' नहीं है। क्योंकि हम मान लें कि यह पज़ल नहीं है, इसके बावजूद भी यदि अनुभव में आए तो पज़ल हो जाता है। माना हुआ बहुत दिनों तक रहता नहीं है न! हम अगर मानें की मेरे पास बैंक में दो लाख रुपये हैं, और उस वजह से चेक लिख दें तो वह वापस आएगा । माना हुआ 'करेक्ट' चीज़ नहीं है। माना हुआ थोड़े समय तक रहता है। उसका कोई अर्थ नहीं है, और किसी-किसी चीज़ में ही वह माना हुआ रह सकता है। प्रश्नकर्ता : एक आत्मा के अलावा बाकी सबकुछ थोड़े ही समय तक रहता है न? दादाश्री : हाँ, यानी कि यह सब माना हुआ ही है न! ये सब ‘रोंग बिलीफ़' ही हैं, और सभी 'टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट' हैं। 'ऑल दीज़ रिलेटिव्स आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट' और सिर्फ 'आत्मा' ही ‘परमानेन्ट' है। जो पूरा ही टेम्परेरी है, लोगों ने उसे ही 'परमानेन्ट' मानकर उनके साथ व्यापार चलाया। ये सभी वस्तुएँ टेम्परेरी हैं, आपको थोड़ा बहुत ऐसा अनुभव हुआ है? प्रश्नकर्ता: पूरी दुनिया टेम्परेरी ही है न! दादाश्री : हाँ, वही मैं कहना चाहता हूँ । 'ऑल दीज़ रिलेटिव्स आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट।' और 'आप' खुद 'परमानेन्ट' हो । अब 'आप' खुद ‘परमानेन्ट' और ये ‘एडजस्टमेन्ट' सभी टेम्परेरी, तो मेल किस तरह से खाएगा? आप भी परमानेन्ट नहीं हो? प्रश्नकर्ता : वह मैं कैसे कह सकता हूँ? दादाश्री : आपका पुनर्जन्म रहा होगा या नहीं होगा? आपका पिछला जन्म रहा होगा या नहीं? वह भी यक़ीन नहीं है न? लेकिन पुनर्जन्म को माना, यानी कि खुद 'परमानेन्ट' हो गया । कोई भी टेम्परेरी वस्तु दूसरी टेम्परेरी वस्तु को समझ नहीं सकती, ‘परमानेन्ट' वस्तु ही टेम्परेरी को टेम्परेरी समझ सकती हैं। 'आप' समझ
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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