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________________ आप्तवाणी-८ १९३ दादाश्री : वास्तव में तो ऐसा है न, वे उनकी भाषा का मोक्ष कहते हैं। बाकी मोक्ष की तो किसीको पड़ी ही नहीं है। सभीको यही चाहिए कि 'हमकु क्या, हम कौन?' ऐसा ही चाहिए। और यदि कोई सच्चा ज्ञानीपुरुष निकले न, तो उसे यह मोक्ष का मार्ग मिले बिना रहेगा ही नहीं। यह तो कुछ न कुछ दानत खोरी है और मान-तान में और 'हम' में पड़े हुए हैं, उसमें कुछ भी प्राप्ति नहीं की है। 'हम' अर्थात् अहंकार, जब यह अहंकार खत्म हो जाएगा न, तो भगवान बन जाएगा। प्रश्नकर्ता : मोक्ष माँगने से मिल जाता है क्या? दादाश्री : माँगने से सभीकुछ मिल जाता है, लेकिन मोक्षदाता हों, तब। मोक्षदाता होने चाहिए, वे खुद मोक्ष में रहते हों तब, बाकी बाहर तो किसीसे मोक्ष की बात करनी ही नहीं चाहिए। वहाँ पर तो धर्म की बात करना, वे आपको अच्छे धर्म की तरफ़ ले जाएँगे। प्रश्नकर्ता : मोक्षदाता कहाँ पर ढूँढें? दादाश्री : यहाँ पर 'ये' ही अकेले हैं। जब आना हो तब आना। वर्ना आपके दोस्त को मोक्ष मिल जाए तब आना। उसे स्वाद आए तब उससे पूछकर आना। मोक्ष प्राप्ति का भाव किसका? प्रश्नकर्ता : मोक्ष तो जीव का करना है न? दादाश्री : जो बँधा हुआ है, उसका मोक्ष करना है। प्रश्नकर्ता : जो बँधा हुआ है, वह कौन है? दादाश्री : जो भोगता है वह, जो बंधन अवस्था भोगता है, वह बँधा हुआ है। प्रश्नकर्ता : ‘पर्टीक्युलरली' उसका नाम क्या है?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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