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________________ १६४ आप्तवाणी-८ दादाश्री : वे लोग जिसे मोक्ष कहते हैं कि मोक्ष यानी तेज में मिल जाना। वह मोक्ष वाजबी नहीं है। वीतरागों ने मोक्ष के बारे में बताया है न, कि वहाँ सिद्धगति में भी खुद का अलहदा अनुभव है, यह 'करेक्ट' वस्तु है। हमें अलहदा अनुभव नहीं हो पाए और वहाँ पर मोक्ष में सबके साथ एक हो जाना हो, तब तो मोक्ष में जाने का अर्थ ही नहीं है, 'मीनिंगलेस' बात है। यानी कि ये बिना सोची समझी बातें हैं सारी। सनातन सुख में डूबे रहना, वही मोक्ष प्रश्नकर्ता : तो आपके हिसाब से मोक्ष किसे माना जाएगा? दादाश्री : मोक्ष यानी कि 'नो बॉस', 'नो अन्डरहेन्ड' और 'परमानेन्ट' खुद के स्वाभाविक सुख में ही रहे। और वहाँ पर स्वतंत्र, सब अपनी-अपनी तरह से सुख भोगते हैं। हर एक सिद्ध अपनी-अपनी स्थिति में होते हैं। प्रश्नकर्ता : तो वहाँ पर इतने सारे सिद्धात्माएँ अलग-अलग तरह से बरतते हैं? दादाश्री : अलग-अलग तरह से नहीं। सभी एक ही स्वभाव के हैं, और वे एक ही प्रकार से हैं। उनमें ज्ञान, दर्शन और सुख होता है, चारित्र उनमें नहीं है। यहाँ पर तीर्थंकर भगवान होते हैं, तो वे ज्ञान-दर्शन और चारित्र सहित होते हैं, और देह सहित होते हैं। वहाँ पर सिद्धों में चारित्र नहीं कहलाता। वहाँ पर तो निरंतर खुद के स्वाभाविक सुख में ही रहते हैं। यानी कि वहाँ पर एकाकार नहीं हो जाना है। वहाँ पर आप अपना सुख स्वतंत्र प्रकार से भोग सकते हो। सिद्धगति में सभी सिद्ध स्वतंत्र रूप से ही हैं। और खुद के सुख का ही अनुभव कर रहे हैं, निरंतर परमानंद का अनुभव कर रहे हैं। उनके एक मिनट का सुख यदि इस दुनिया पर पड़े, शायद कभी टपक पड़े, तो पूरी दुनिया हजारों वर्षों तक आनंद में रहेगी, ऐसे सुख को भोग रहे हैं। और ऐसे सुख के लिए ये लोग अधीर हो रहे हैं, और आपका खुद का सुख भी ऐसा ही है। मुझे इस देह का
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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