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________________ आप्तवाणी-८ १४९ विरोधाभासी व्यवहार का अंत कब आएगा? इसीलिए कहा है कि, 'जो तू जीव तो कर्ता हरि।' और 'जो तू शिव तो वस्तु खरी।' तू खुद ही शिवस्वरूप बन गया तो वस्तु फिर कोई है ही नहीं, बाप भी ऊपरी नहीं है। जब तक जीव है, तभी तक यह भौतिक सुख और ये सारे रिश्तेदार अच्छे लगते हैं। ये मेरे समधी आए', समधी आए तो उसमें भी खो जाता है। जिसमें भी खो जाता है न, उस स्वरूप हो जाता है। तो समधी आएँ, तो भी समधी में खो जाते हैं, ऐसे लोग हैं। फिर क्या कहते हैं कि, 'कर्ता मिटे तो छूटे कर्म, ए छे महाभजननो मर्म।' महाभजन का मर्म कौन-सा? यदि कर्म नहीं छूटे तो कर्म के अधीन कर्ता और कर्ता के अधीन कर्म, कर्म के अधीन कर्ता और कर्ता के अधीन कर्म, कैसा चक्कर है। कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़, कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़।' और उसमें ये सभी लोग कर्तापन सिखलाते हैं, कर्ता बनाते हैं। ये छोड़ो, अच्छा करो।' अब एक तरफ़ कर्म छोड़ने हैं और एक तरफ़ यह करना है। प्रश्नकर्ता : विरोधाभास। दादाश्री : हाँ, इसलिए यह गाड़ी काशी तक पहुँचती नहीं। कितने ही जन्मों से लोगों की गाड़ियाँ पहुँचती ही नहीं। अरे...आराम से न जाने कौन-से गाँव में पड़ी होती है, तो काशी तक किसीकी भी पहुँची ही नहीं। इसलिए मैं आपके लिए काशी का पासपोर्ट बना देता हूँ और वह पासपोर्ट ही आपको काशी तक ले जाएगा। गाड़ी के पहिये नहीं ले जाएँगे, लेकिन यह पासपोर्ट ही ले जाएगा। क्योंकि 'कर्तापन' छूट जाता है। तब फिर रहा ही क्या इस दुनिया में? उल्टी मान्यताएँ, 'ज्ञानी' ही छुड़वाएँ प्रश्नकर्ता : मेरा ऐसा मानना है कि जो यह सब करवाता है, वह जीव ही करवाता है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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