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________________ १०८ आप्तवाणी -८ तो वहाँ पर ज्ञानीपुरुष से मिलता है, वह निमित्त मिल जाए, तब वे उसके मुँह में रख देते हैं कि 'दिस इज़ देट।' प्रश्नकर्ता : अब आप बताइए कि ज्ञान के अंतर्गत वस्तु है या वेद के अंतर्गत ज्ञान है ? यानी कि ज्ञान वेद में है या वेद ज्ञान में हैं ? दादाश्री : ज्ञान वेद में है, वेद ज्ञान में है लेकिन 'विज्ञान' वेद के भी बाहर है। प्रश्नकर्ता : ज्ञान और विज्ञान दोनों वेद में बताए गए हैं । दादाश्री : वे सभी शब्द दिए हुए हैं। मूल वस्तु नहीं है। 'मीठी है' ऐसा लिखा हुआ है, अनुभव नहीं लिखा है ! 'थ्योरिटिकल' में अनुभव नहीं होता। प्रश्नकर्ता : ऋषि-मुनियों ने अनुभव किया है न? दादाश्री : हाँ, लेकिन वह अनुभव यों ही नहीं लिया जा सकता। वह अनुभव, अनुभवी पुरुष के माध्यम से, निमित्त से होता है, वर्ना नहीं हो पाता। हर कोई व्यक्ति नहीं कर सकता, बीच में निमित्त के रूप में 'ज्ञानीपुरुष' हैं। प्रश्नकर्ता : वेद में भी है कि गुरु के बिना तो चलेगा ही नहीं । दादाश्री : जो-जो बात गुरु के बिना की जाती है न, वे सभी पागल जैसी बाते हैं। प्रश्नकर्ता : यह जो सिद्ध हो चुकी हक़ीक़त है, उस सिद्ध हो चुकी हक़ीकतवाले जो ऋषि-मुनि हैं, वे अभी अपने यहाँ नहीं हैं। दादाश्री : वह सिद्ध की हुई वस्तु कैसी है कि सहज है, सुगम है लेकिन उसकी प्राप्ति दुर्लभ है। क्योंकि प्राप्त पुरुष मिलने चाहिए, तब जाकर उसकी प्राप्ति होगी । प्राप्त पुरुष कैसे होते हैं कि खुद मुक्त पुरुष होते हैं, स्वतंत्र पुरुष होते हैं, जिन्हें संसार का एक भी विचार आता ही नहीं, स्त्री संबंधी विचार नहीं आते, खुद के अस्तित्व संबंधी विचार नहीं
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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