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________________ आप्तवाणी-८ विज्ञान के लिए मार्गदर्शन देते हैं, इशारा करते हैं । बाकी विज्ञान तो खुद ही अवर्णनीय है, अवक्तव्य है । वह ऐसे पुस्तकों में नहीं होता। प्रश्नकर्ता : ‘सत्यम् ज्ञानम्' कहा है न! 'अनंतम् ब्रह्म' ऐसा भी कहा है। १०७ दादाश्री : शब्द जो भी हैं, वे तो ठीक हैं न ! बाकी वेद त्रिगुणात्मक हैं, उन्हें और कुछ लेना-देना नहीं है न! प्रश्नकर्ता : लेकिन ज्ञान त्रिगुणात्मक है ही न? दादाश्री : जो त्रिगुणात्मक ज्ञान है, उसे बुद्धि कहते हैं। वेद तो एक ही काम करते हैं कि संसार का डेवलपमेन्ट करते हैं। धीरे-धीरे बुद्धिजन्य डेवलपमेन्ट करते हैं और फिर साथ ही साथ यदि कोई 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तो उसका काम हो जाता है, बस निमित्त मिलना चाहिए। यदि निमित्त नहीं मिले तो काम नहीं हो पाता । ये वेद क्या कहते हैं कि इनमें सारा ही बुद्धिजन्य ज्ञान आ जाता है, उसे वेदांत कहा जाता है । अब ज्ञानजन्य ज्ञान अर्थात् विज्ञान, अब उसमें तुझे पदार्पण करना है। अनिवार्यता, 'ज्ञानी' की प्रश्नकर्ता : मनुष्यानंद से ब्रह्मानंद तक जाने के लिए वेद में बारह सीढ़ियाँ बताई गई हैं, उस एक - एक सीढ़ी पर चढ़ने के लिए वेद में पूरा वर्णन है। दादाश्री : अंतिम सीढ़ी तक पहुँचकर इतना ही जान पाते हैं, बारहवीं सीढ़ी पर, कि ‘शक्कर मीठी है', इतना जान पाते हैं, लेकिन मीठी का मतलब क्या है, वह नहीं जान पाते । जब उस बारहवीं सीढ़ी पर पहुँचते हैं, तब 'यह चीज़ बिल्कुल मीठी है और इसके अलावा और किसीकी ज़रूरत नहीं है' ऐसा उसे यक़ीन हो जाता है, लेकिन मीठी का मतलब क्या है? तब वह इसे ढूँढता है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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