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________________ आप्तवाणी-८ १०५ का मालिक नहीं बना। यह वाणी-यह 'ओरिजिनल टेपरिकार्ड' बोल रहा है, मैं नहीं बोल रहा। यह 'ओरिजिनल टेपरिकार्ड' वक्ता है, आप श्रोता हो, मैं ज्ञाता-दृष्टा हूँ, यानी यह व्यवहार अलग ही प्रकार का है। अतः जब यह सारा ही 'सोल्युशन' आ जाए और जब एक भी 'सोल्युशन' बाकी नहीं रहे, तब जानना कि ज्ञान प्रकट हो गया। समाधान ही रहे, हमेशा निरंतर समाधान ही रहे, उसे ही ज्ञान कहते हैं। किसी भी स्थिति में, किसी भी संयोग में, किसी भी काल में जो समाधान में रखे, वही ज्ञान है। अन्य सब अज्ञान कहलाता है। यानी आपको जो बातचीत करनी हो, वह करो सारी। 'ज्ञानीपुरुष' तो चार वेद के ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) कहलाते हैं। और किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछा जा सकता है, क्योंकि यह हम देखकर बोलते हैं। एक भी शब्द पुस्तक से पढ़ा हुआ नहीं बोलते। मैं देखकर बोलता हूँ इसलिए लोगों के काम आता है। और फिर, मैं बोलनेवाला नहीं हूँ, 'टेपरिकार्ड' बोलता है, मैं तो ज्ञाता-दृष्टा हूँ। वेद थ्योरिटिकल, विज्ञान प्रेक्टिल हम चार वेदों के ऊपरी हैं। चार वेद पढ़ने के बाद में वेद यह कहते हैं कि 'दिस इज नॉट देट'। प्रश्नकर्ता : वेद और ज्ञान, ये दोनों शब्द अलग-अलग क्यों हैं? दादाश्री : वेद बुद्धिजन्य हैं, क्रिया सहित हैं, त्रिगुणात्मक हैं और ज्ञान त्रिगुणात्मक नहीं होता, बुद्धिजन्य नहीं होता और स्वभाव से चेतन भाव ही होता है। ज्ञान हमेशा ही चेतन होता है। प्रश्नकर्ता : तो वेद वाङगमय में ज्ञान तो सबकुछ भरा हुआ ही है न? दादाश्री : वह ज्ञान मोक्ष के लिए काम में नहीं आएगा। वह साधनज्ञान है। साध्यज्ञान नहीं है उसमें। उसमें साधनज्ञान है, अतः बुद्धिजन्य है। यानी वेद इटसेल्फ कहते हैं कि 'दिस इज़ नॉट देट।' तू जिस आत्मा को ढूँढ रहा है, वह यहाँ पर नहीं हो सकता। वह अवर्णनीय
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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