SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-८ ९३ प्रश्नकर्ता : पुद्गल बोल रहा है। दादाश्री : हाँ, बोलता है पुद्गल और कहता है, 'मैं बोल रहा हूँ।' चेतन में बोलने का गुणधर्म है ही नहीं। यदि बोलने का गुणधर्म आत्मा का है तो फिर कभी किसीकी बोली बंद हो जाती है, ऐसा होता है या नहीं होता? अतः यह आत्मा का गुण नहीं है। उसके तो परमात्म गुण हैं सारे। इस तरह से बोले, हिले-डुले तो वह थक जाएगा। थक नहीं जाएगा? आत्मा में एक भी गुण ऐसा नहीं है कि जिसका 'एन्ड' आए। और हिलने-डुलने का गुण यदि आत्मा का होता न, तब तो शाम को थक जाता तो सो जाना पड़ता, अतः हिलने-डुलने का गुण आत्मा का नहीं है। आत्मा के सभी गुण ‘परमानेन्ट' हैं। आप जो ये सब बता रहे हो न, वे सभी टेम्परेरी गुण हैं और वे 'रिलेटिव' गुण हैं, और वे 'रिलेटिव आत्मा' के हैं। यह जो आप अभी अपने आप को आत्मा मानते हो, वह 'रिलेटिव आत्मा' है, उसके अंदर 'रियल आत्मा' है। उस 'रियल आत्मा' का 'रियलाइज़ेशन' हो जाए तब काम होगा। लोग कहते हैं न 'सेल्फ' का 'रियलाइज़' करना है? ये शब्द सुने हैं न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : उस 'सेल्फ' का 'रियलाइजेशन' कब होगा कि 'रियल आत्मा' का 'रियलाइज़ेशन' होगा तब। जगत् का जाना हुआ आत्मा तो... इस जगत् में आपने चेतन देखा है कभी? प्रश्नकर्ता : यह सारा देखते हैं, वह चेतन है। दादाश्री : नहीं। चेतन तो आँखों से दिख नहीं सकता, कानों से सुनाई नहीं दे सकता, जीभ से चेतन चखा नहीं जा सकता। चेतन पाँच इन्द्रियों से कभी भी अनुभव में नहीं आ सकता। चेतन तो दुनिया ने देखा
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy